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"स्वतंत्रता: गौरव की विरासत और भविष्य का संकल्प"

 

"स्वतंत्रता: गौरव की विरासत और भविष्य का संकल्प"


आशुतोष प्रताप यदुवंशी



यह स्वतंत्रता दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि हमारी आत्मा का उत्सव है। 15 अगस्त की सुबह जब तिरंगा आसमान में लहराता है, तो केवल कपड़ा हवा में नहीं फहराता, बल्कि लाखों बलिदानों की कहानियाँ, संघर्ष की स्मृतियाँ और एक नए भारत के सपनों की गूँज भी उसमें समाहित होती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल गुलामी से मुक्ति नहीं, बल्कि अपनी पहचान, अपनी संस्कृति और अपने मूल्यों की रक्षा करना भी है।

आज जब हम 78 वर्षों के इस सफ़र पर नज़र डालते हैं, तो पाते हैं कि आज़ादी हमें विरासत में मिली, लेकिन इसकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। स्वतंत्रता का मूल्य वही समझ सकता है, जिसने बेड़ियों का भार झेला हो। हमारे पूर्वजों ने अपने प्राण न्यौछावर कर इस धरा को आज़ाद कराया, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भयमुक्त और सम्मानपूर्वक जी सकें।

लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हमने इस स्वतंत्रता को सही मायनों में संजोया है? आज़ादी के साथ-साथ हमें आत्मनिर्भरता, सामाजिक समानता और राष्ट्रीय एकता की भी आवश्यकता है। भ्रष्टाचार, जातिगत विभाजन, आर्थिक असमानता और पर्यावरण संकट जैसे मुद्दे हमारे सामने चुनौती बनकर खड़े हैं। अगर हम इनसे आँख मूँद लेंगे, तो कहीं ऐसा न हो कि स्वतंत्रता केवल औपचारिकता बनकर रह जाए।

इस दिन हमें केवल जश्न नहीं, बल्कि आत्ममंथन भी करना चाहिए। हमें देखना होगा कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं और किन सुधारों की आवश्यकता है। स्वतंत्रता दिवस हमें प्रेरित करता है कि हम अपने देश को केवल आर्थिक महाशक्ति ही नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों की भी शक्ति बनाएँ।

आज जब हम "जय हिंद" का नारा लगाएँ, तो यह सिर्फ़ शब्द न रहे, बल्कि एक संकल्प बने—कि हम इस भूमि को और स्वच्छ, और सशक्त, और सामर्थ्यवान बनाएँगे। यह दिन हमारे अतीत का गौरव, वर्तमान की चेतावनी और भविष्य का संकल्प है। स्वतंत्रता का यह पर्व हमें बार-बार यह संदेश देता है—
"स्वतंत्रता मिली है, अब इसे सार्थक बनाना हमारी जिम्मेदारी है।"


हमारे स्वतंत्रता संग्राम में केवल युद्धभूमि पर लड़ने वाले वीर ही नहीं, बल्कि कलम से क्रांति करने वाले लेखक, सत्याग्रह की राह दिखाने वाले नेता, अपने आँगन में सैनिकों को छिपाने वाली माताएँ और भविष्य की स्वतंत्र पीढ़ी के लिए अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ देने वाले नौजवान भी शामिल थे। 15 अगस्त का हर क्षण उन सभी के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है।

आज वैश्विक मंच पर भारत की पहचान पहले से कहीं अधिक मजबूत है—हम तकनीकी, अंतरिक्ष, खेल, कला और व्यापार के क्षेत्र में नए मापदंड स्थापित कर रहे हैं। लेकिन स्वतंत्रता का असली अर्थ तभी साकार होगा, जब गाँव का किसान, शहर का मजदूर, पढ़ाई करने वाला बच्चा और घर सँभालने वाली महिला—सबको बराबर का अवसर और सम्मान मिले।

स्वतंत्रता का यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि राष्ट्र केवल सरकारों से नहीं चलता—यह हम सभी के सामूहिक प्रयास से बनता है। अगर हम भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ, अगर हम जात-पात के नाम पर बँटने से इनकार करें, अगर हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाएँ, तो देश स्वतः मज़बूत होगा।

15 अगस्त का संदेश है—"स्वतंत्र रहो, लेकिन अनुशासित रहो।" स्वतंत्रता कोई अनियंत्रित आज़ादी नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों के साथ जीने का नाम है। यह वह दीपक है, जिसे हमने अपने पूर्वजों के खून से जलाया है—और इसे बुझने न देना ही सबसे बड़ा देशभक्ति का कार्य है।

आइए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम सिर्फ़ तिरंगा न लहराएँ, बल्कि अपने दिल में एक ऐसा संकल्प भी लहराएँ—कि हम न सिर्फ़ भारत को आगे ले जाएँगे, बल्कि उसे इतना ऊँचा उठाएँगे कि आने वाली पीढ़ियाँ गर्व से कहें—"हम एक स्वतंत्र, सशक्त और सद्भावनापूर्ण भारत के नागरिक हैं।"
जय हिंद!

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