श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : धर्म, प्रेम और जीवन-दर्शन का उत्सव
भारत का इतिहास और संस्कृति पर्वों और उत्सवों की परंपराओं से भरा हुआ है। ये पर्व केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज को नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दिशा देने का कार्य भी करते हैं। इन्हीं में से एक है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी—वह पावन अवसर, जब मानवता को उसके मार्गदर्शन के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया।
श्रीकृष्ण का अवतरण : अंधकार से प्रकाश की ओर
पुराणों के अनुसार, जब कंस जैसे अत्याचारी राजाओं के अत्याचार से धरती कराह उठी, तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। परिणामस्वरूप, उन्होंने वचन दिया कि वे देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में अवतरित होंगे। कारागार की अंधेरी रात, पहरेदारों की कड़ी निगरानी, और भय का वातावरण—इन्हीं परिस्थितियों में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
यह केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि यह प्रतीक है कि जब-जब संसार में अधर्म और अंधकार बढ़ता है, तब-तब ईश्वर अवतरित होकर धर्म और सत्य की पुनर्स्थापना करते हैं।
जन्माष्टमी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
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धर्म की पुनर्स्थापना : श्रीकृष्ण का जीवन बताता है कि अन्याय और अधर्म का अंत निश्चित है।
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गीता का संदेश : महाभारत के युद्धभूमि में दिया गया गीता उपदेश, कर्म और भक्ति का सर्वोच्च मार्गदर्शन है।
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भक्ति और प्रेम का स्वरूप : राधा-कृष्ण का संबंध भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण की चरम सीमा है।
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जीवन की नीति : कृष्ण का बाल्यकाल चंचलता, यौवन प्रेम और पराक्रम, तथा वयस्क जीवन नीति और कर्तव्य का दर्पण है।
पर्व की परंपराएँ और उत्सव
भारत में जन्माष्टमी की विविध परंपराएँ इसे और भी अद्भुत बनाती हैं—
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व्रत और उपवास : भक्त पूरे दिन निराहार रहकर भक्ति करते हैं। रात्रि के बारह बजे, जब कृष्ण का जन्म हुआ था, तब पूजा-अर्चना की जाती है।
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झूला और सजावट : घरों और मंदिरों में नन्हे कान्हा को झूले पर बैठाया जाता है। फूलों, दीपों और रंगोली से वातावरण शोभायमान होता है।
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दही-हांडी : महाराष्ट्र और उत्तर भारत के कई हिस्सों में दही-हांडी की परंपरा है, जिसमें युवा मिलकर मटकी फोड़ते हैं। यह कृष्ण की माखन-चोरी की लीला का जीवंत रूप है।
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झांकियाँ और रासलीला : वृंदावन, मथुरा और द्वारका जैसे स्थानों पर कृष्ण की लीलाओं की झांकियाँ और रासलीलाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।
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भजन-कीर्तन : रात्रि जागरण और कृष्ण भक्ति के गीत वातावरण को अलौकिक बना देते हैं।
श्रीकृष्ण के जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ
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अन्याय के खिलाफ संघर्ष : कंस का वध यह सिखाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है।
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मित्रता का आदर्श : सुदामा और कृष्ण की मित्रता मानव जीवन में सच्चाई और निःस्वार्थता का सर्वोत्तम उदाहरण है।
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कर्म का महत्व : गीता का उपदेश—“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”—मनुष्य को उसके कर्तव्य की ओर प्रेरित करता है।
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प्रेम की पवित्रता : राधा-कृष्ण का प्रेम हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम आत्मा का मिलन है, जिसमें वासना नहीं, केवल समर्पण और शुद्धता होती है।
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संकट में धैर्य : श्रीकृष्ण का जीवन दिखाता है कि कितने भी कठिन हालात क्यों न हों, धैर्य और विवेक से उनका समाधान निकाला जा सकता है।
आधुनिक संदर्भ में श्रीकृष्ण
आज का युग भौतिकता, स्वार्थ और नैतिक पतन से ग्रस्त है। ऐसे समय में श्रीकृष्ण के उपदेश हमें याद दिलाते हैं कि—
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समाज को प्रेम और करुणा से जोड़ना होगा।
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अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा होना ही सच्चा धर्म है।
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धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की कला है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता के लिए जीवन-दर्शन है। यह हमें सिखाती है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी अंधकारमय क्यों न हों, सत्य और धर्म का प्रकाश अंततः विजयी होता है। कृष्ण का जीवन प्रेम, मित्रता, साहस और नीति का संगम है—जिसे यदि हम अपने जीवन में उतार लें, तो समाज में शांति, न्याय और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
🌸 इस जन्माष्टमी पर हमें केवल उत्सव नहीं मनाना चाहिए, बल्कि यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में कृष्ण के आदर्शों—धर्म, प्रेम और नीति—को अपनाएँ। यही उनके जन्मोत्सव की वास्तविक श्रद्धांजलि होगी।
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