वीणापाणि मइया लय द, सुर ताल द [ सरस्वती वंदना ]
स्थाई -
वीणापाणि मइया लय द सुर ताल द
नया नया ख्याल द माँ ।2।
ख्याल द माँ ,नया ख्याल द माँ ।4।
वीणापाणि मइया लय द सुर ताल द
नया नया ख्याल द माँ
अंतरा 1.
शीश मुकुट शुभ्र भाल गले मोतीयन के माल ।4।
हे विशाल नयन ,
हे विशाल नयन वाली गुण विशाल द ,
नया नया ख्याल द माँ ।2।
वीणापाणि मइया लय द सुर ताल द,
नया नया ख्याल द माँ ।2।
अंतरा 2.
करा कृपा महारानी हँसवाहिनी भवानी
हे कल्याणी ,
हे कल्याणी राग द्वेष दुख निकाल द ,
नया नया ख्याल द माँ ।2।
वीणापाणि मइया लय द सुर ताल द
नया नया ख्याल द माँ ।2।
लेख:-
वीणापाणि माँ की वंदना में नवीन विचारों की याचना
भारतीय संस्कृति में माँ सरस्वती — जिन्हें वीणापाणि कहा जाता है — ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। यह वंदना एक भावपूर्ण पुकार है, जिसमें साधक माँ से केवल ज्ञान की नहीं, बल्कि नवीनता की याचना कर रहा है। वह माँ से "नया नया ख्याल" देने की प्रार्थना करता है — अर्थात ऐसे विचार जो सृजनशील हों, ताजगी से भरे हों, और जीवन में प्रेरणा जगाएँ।
स्थायी भाव: माँ से सुर, ताल और नवीन ख्याल की याचना
वंदना का स्थायी भाग एक बेहद सुंदर विनती है:
"वीणापाणि मैया लय द सुर ताल द, नया नया ख्याल द माँ"
यहाँ साधक केवल पारंपरिक ज्ञान की कामना नहीं करता, वह चाहता है कि उसकी चेतना में लयबद्धता आए, सुरों की मिठास हो, और सबसे बढ़कर उसकी सोच में नयापन हो। यह आज के युग की एक आधुनिक भावना है, जहाँ केवल ज्ञान ही नहीं बल्कि क्रिएटिविटी भी पूजनीय है।
अंतरा 1: सौंदर्य और गुणों की देवी
"शीश मुकुट शुभ्र भाल, गले मोतीयन के माल..."
यहाँ माँ के सौंदर्य का चित्रण किया गया है — उनका उज्जवल ललाट, उनका भव्य रूप और विशाल नेत्र जो दिव्य दृष्टि का प्रतीक हैं। साधक माँ से उनकी विशाल दृष्टि और विशाल गुण माँगता है, जिससे वह खुद भी अपने विचारों में विशालता ला सके।
अंतरा 2: कृपा की याचना और कल्याण की प्रार्थना
"करे कृपा महारानी, हँसवाहिनी भवानी..."
इस अंतरे में माँ को कल्याणी कहा गया है — वह जो कल्याण करती हैं। साधक उनसे राग, द्वेष और दुख को हटाने की प्रार्थना करता है। यह केवल बाहरी जीवन की बात नहीं है, बल्कि आंतरिक शुद्धता की भी बात है। जब मन राग-द्वेष से मुक्त होता है, तब सच्चे अर्थों में नवीन विचार जन्म लेते हैं।
निष्कर्ष
यह वंदना केवल माँ सरस्वती की स्तुति नहीं, बल्कि एक सर्जक की अंतरतम पुकार है। यह एक ऐसी भावना है जहाँ वह अपने विचारों को माँ की कृपा से पुष्ट, नवीन और कल्याणकारी बनाना चाहता है।
"नया नया ख्याल द माँ" — यह पंक्ति बार-बार दोहराई गई है, जैसे साधक खुद को दोहराकर माँ से ऊर्जा और प्रेरणा लेना चाहता हो।
यह वंदना हर उस व्यक्ति के लिए है जो किसी भी कला, लेखन, संगीत या विचार-क्षेत्र में रचनात्मक है। माँ सरस्वती की यह स्तुति एक आधुनिक रचनाशीलता का पुराना, परंपरागत और शक्तिशाली आधार है।
लेखक - अज्ञात
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