भूटान के पूर्व राजा जिग्मे सिंगये वांगचुक (K4) ने अपने दूरदर्शी नेतृत्व से देश को आधुनिकता, लोकतंत्र और सांस्कृतिक संरक्षण के संतुलन पर खड़ा किया। उन्होंने सकल राष्ट्रीय सुख को विकास का मूल दर्शन बनाया और भारत के साथ जलविद्युत कूटनीति के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव रखी। भारत-भूटान संबंधों को उन्होंने पारस्परिक विश्वास और सुरक्षा सहयोग पर आधारित मॉडल साझेदारी में रूपांतरित किया। उनके शासन ने सिद्ध किया कि छोटे राष्ट्र भी संतुलित नीतियों, पर्यावरणीय चेतना और पड़ोसी सहयोग के माध्यम से समृद्ध, स्थिर और सशक्त बन सकते हैं।
दूरदर्शी नेतृत्व जिसने सकल राष्ट्रीय सुख को विकास का आधार बनाया, जलविद्युत कूटनीति से आत्मनिर्भरता दी, और भारत-भूटान संबंधों को स्थायी सुरक्षा-सहयोग की नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
- डॉ सत्यवान सौरभ
भूटान का इतिहास एक ऐसे अद्भुत शासक की गवाही देता है जिसने न केवल अपने देश को आधुनिकता के मार्ग पर अग्रसर किया, बल्कि उस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को भी सुरक्षित रखा जिसने उसे एक विशिष्ट राष्ट्र के रूप में पहचान दी। यह शासक थे चतुर्थ राजा जिग्मे सिंगये वांगचुक (K4), जिन्होंने 1972 से 2006 तक शासन किया। उन्होंने ऐसे समय में राजगद्दी संभाली जब भूटान एक सीमित संसाधनों वाला, आंतरिक रूप से बंद और बाहरी दुनिया से अपेक्षाकृत दूर देश था। परंतु उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने इस छोटे हिमालयी राष्ट्र को स्थिर, समृद्ध और आत्मनिर्भर लोकतंत्र में बदल दिया।
राजा जिग्मे सिंगये वांगचुक की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने विकास को केवल आर्थिक प्रगति से नहीं जोड़ा, बल्कि उसे मानवीय, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संतुलन से परिभाषित किया। उन्होंने “सकल राष्ट्रीय सुख (Gross National Happiness)” की अवधारणा दी, जिसने भूटान के शासन, नीति निर्माण और सामाजिक जीवन का मूल दर्शन बनकर कार्य किया। इस विचार में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि विकास का मापदंड केवल धन-संपत्ति नहीं, बल्कि लोगों का मानसिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन भी होना चाहिए। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भूटान के आधुनिकीकरण की गति परंपराओं को निगल न जाए, बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़े।
राजा वांगचुक ने भूटान को पूर्ण राजतंत्र से लोकतांत्रिक संवैधानिक शासन में रूपांतरित करने की ऐतिहासिक प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने 2001 में भूटान का संविधान तैयार करवाया, जो 2008 में लागू हुआ। यह दुनिया में दुर्लभ उदाहरण है जब किसी राजा ने स्वयं अपने अधिकार सीमित कर लोकतांत्रिक संस्थाओं को शक्ति सौंपी। 2006 में उन्होंने स्वेच्छा से अपने पुत्र जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया, यह दिखाते हुए कि सत्ता का वास्तविक उद्देश्य जनकल्याण है, न कि अधिकारों का संचय। इस परिवर्तन ने भूटान को एक स्थायी लोकतंत्र, पारदर्शी शासन और संस्थागत जवाबदेही की दिशा में अग्रसर किया।
आर्थिक दृष्टि से भी जिग्मे सिंगये वांगचुक का काल भूटान के इतिहास में परिवर्तनकारी रहा। उन्होंने देश के सीमित संसाधनों को सही दिशा में उपयोग कर विकास का आत्मनिर्भर मॉडल तैयार किया। भूटान ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क संपर्क जैसी बुनियादी सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार किए। भारतीय सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation) के सहयोग से भूटान के दुर्गम इलाकों में सड़कें और पुल बने, जिससे न केवल व्यापार और आवागमन बढ़ा बल्कि सीमाई सुरक्षा भी सुदृढ़ हुई। यह भूटान के ग्रामीण विकास और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण की दिशा में एक निर्णायक कदम था।
परंतु K4 का सबसे उल्लेखनीय योगदान रहा भारत-भूटान संबंधों का सुदृढ़ीकरण। उन्होंने यह समझा कि भूटान की भौगोलिक स्थिति—भारत और चीन के बीच—एक रणनीतिक संवेदनशीलता का क्षेत्र है। अतः उन्होंने भारत के साथ पारस्परिक विश्वास और सहयोग पर आधारित संबंधों को प्राथमिकता दी। भूटान की विदेश नीति का प्रमुख स्तंभ बना भारत के साथ “विश्वास आधारित साझेदारी”, जो आज भी दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय संबंधों का आदर्श उदाहरण मानी जाती है।
इसी साझेदारी का सबसे प्रभावी रूप रहा जलविद्युत कूटनीति (Hydropower Diplomacy)। भूटान की प्राकृतिक संपदा में सबसे बड़ा संसाधन उसकी नदियाँ हैं, जिनमें अपार जलविद्युत क्षमता निहित है। राजा वांगचुक ने बहुत पहले यह पहचान लिया था कि यही संसाधन भूटान की आत्मनिर्भरता और भारत-भूटान आर्थिक साझेदारी की रीढ़ बन सकता है। इस सोच के परिणामस्वरूप भारत और भूटान ने मिलकर कई प्रमुख परियोजनाएँ शुरू कीं—चुखा (1988), कुरिचू (2001), ताला (2006)—जो भारत द्वारा वित्तपोषित और तकनीकी रूप से सहयोगित थीं। इन परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली भारत को निर्यात की गई और उसी राजस्व से भूटान ने अपने सामाजिक विकास कार्यक्रम चलाए।
इस प्रकार जलविद्युत कूटनीति ने दोनों देशों को आर्थिक रूप से एक-दूसरे से जोड़ दिया। भारत को स्वच्छ ऊर्जा का विश्वसनीय स्रोत मिला और भूटान को स्थायी आय का साधन। यह संबंध केवल आर्थिक नहीं था, बल्कि राजनीतिक विश्वास और भौगोलिक स्थिरता का भी प्रतीक था। आज भी भूटान की राष्ट्रीय आय का लगभग 25% हिस्सा जलविद्युत निर्यात से आता है और इसका अधिकांश भारत को जाता है। इस मॉडल ने दिखाया कि क्षेत्रीय साझेदारी केवल व्यापारिक हित नहीं, बल्कि सतत विकास और पर्यावरणीय संतुलन के माध्यम से भी आगे बढ़ सकती है।
जिग्मे सिंगये वांगचुक की नीतियों ने भारत-भूटान सुरक्षा सहयोग को भी नई गहराई दी। भूटान की उत्तरी सीमाएँ चीन से लगती हैं, जहाँ कई बार सीमा विवाद और घुसपैठ की घटनाएँ हुई हैं। K4 ने इस संभावित खतरे को समय रहते भाँप लिया और भारत के साथ सामरिक सहयोग को सुदृढ़ किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भूटान कभी भी किसी तीसरे देश के लिए भारत विरोधी गतिविधियों का अड्डा न बने। 2003 में उन्होंने भारतीय विद्रोही संगठनों — ULFA, NDFB और KLO — के ठिकानों के खिलाफ ‘ऑपरेशन ऑल क्लियर’ चलाया और उन्हें भूटान से बाहर कर दिया। यह एक साहसिक कदम था जिसने भूटान की संप्रभुता और भारत के प्रति उसकी निष्ठा को प्रमाणित किया।
सुरक्षा क्षेत्र में यह सहयोग केवल सैन्य नहीं बल्कि रणनीतिक भी था। भारत ने भूटान की सेना को प्रशिक्षण, उपकरण और बुनियादी ढाँचा प्रदान किया। सीमा इलाकों में संयुक्त निगरानी और खुफिया साझेदारी ने दोनों देशों को क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में मदद की। यह सहयोग बाद के वर्षों में डोकलाम (2017) जैसे संकटों में और अधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ, जब दोनों देशों ने एक-दूसरे के रणनीतिक हितों की रक्षा में एकजुट होकर कार्य किया।
राजा वांगचुक की दूरदर्शिता ने यह भी सुनिश्चित किया कि भूटान की विदेश नीति “संतुलन” पर आधारित रहे — जहाँ भारत प्राथमिक साझेदार है, वहीं भूटान ने अपनी सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विशिष्टता को भी सुरक्षित रखा। उन्होंने अपने शासनकाल में चीन के साथ संवाद के कुछ सीमित प्रयास किए, परंतु भारत के हितों को कभी भी हानि नहीं पहुँचने दी। यह संतुलन आज भी भूटान की विदेश नीति की पहचान है।
उनकी नीतियों के कारण भारत और भूटान के बीच केवल सरकार-से-सरकार का नहीं, बल्कि “जन-से-जन संबंध (People-to-People Relations)” का भी विस्तार हुआ। भूटान में भारत शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, जलविद्युत और आईटी जैसे क्षेत्रों में सबसे बड़ा विकास सहयोगी बना। भूटान के युवा भारत में शिक्षा प्राप्त करते हैं, और दोनों देशों के लोगों में सांस्कृतिक निकटता का भाव है।
भूटान के लोकतांत्रिक संक्रमण के बाद भी K4 की भूमिका परामर्शदाता और मार्गदर्शक के रूप में बनी रही। वर्तमान राजा जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक (K5) ने अपने पिता की नीतियों को आगे बढ़ाते हुए भारत के साथ संबंधों को और गहरा किया। 2025 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूटान के दौरे पर गए, तो उन्होंने K4 के 70वें जन्मदिन समारोह में भाग लिया — यह इस संबंध की गहराई और निरंतरता का प्रतीक है।
आज जब भारत अपने “पड़ोसी प्रथम (Neighbourhood First)” नीति के तहत क्षेत्रीय साझेदारी को प्राथमिकता दे रहा है, भूटान इसके केंद्र में है। भारत के लिए भूटान न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में उस दुर्लभ पड़ोसी का उदाहरण है जहाँ विश्वास, समानता और आपसी सम्मान के आधार पर संबंध कायम हैं।
भूटान के लिए भी भारत केवल एक आर्थिक भागीदार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सुरक्षा गारंटी का प्रतीक है। जलविद्युत कूटनीति के माध्यम से जहाँ आर्थिक परस्परता मजबूत हुई, वहीं सुरक्षा सहयोग के कारण सीमाई स्थिरता बनी रही। इस संतुलन ने भूटान को एक “सॉफ्ट पावर” राष्ट्र के रूप में पहचान दी, जिसने विकास और आध्यात्मिकता को जोड़कर दुनिया के सामने एक वैकल्पिक विकास मॉडल प्रस्तुत किया।
राजा जिग्मे सिंगये वांगचुक ने यह सिद्ध किया कि छोटे देश भी यदि दूरदृष्टि, स्थिर नेतृत्व और संतुलित कूटनीति अपनाएँ तो वे न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं बल्कि अपने बड़े पड़ोसियों के साथ समानता पर आधारित संबंध भी स्थापित कर सकते हैं। भूटान का लोकतांत्रिक और आर्थिक उत्थान इसी नेतृत्व की विरासत है।
अंततः कहा जा सकता है कि K4 ने भारत-भूटान संबंधों को “विकास और सुरक्षा साझेदारी (Development-Security Partnership)” में रूपांतरित किया। जहाँ जलविद्युत परियोजनाएँ आर्थिक समृद्धि का आधार बनीं, वहीं रक्षा और सीमाई सहयोग ने राजनीतिक स्थिरता को सुनिश्चित किया। उनका शासन इस बात का प्रमाण है कि आधुनिकता और परंपरा, लोकतंत्र और राजतंत्र, आत्मनिर्भरता और साझेदारी — सभी एक साथ अस्तित्व में रह सकते हैं यदि नेतृत्व में दूरदर्शिता और निस्वार्थता हो।
आज भूटान दुनिया का एकमात्र “कार्बन-ऋणात्मक (Carbon Negative)” देश है, जहाँ विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बना हुआ है। यह उस सोच का परिणाम है जो K4 ने दशकों पहले बोई थी। उन्होंने न केवल भूटान की भौगोलिक सीमाओं को सुरक्षित किया, बल्कि उसकी आत्मा को भी संरक्षित रखा। भारत-भूटान संबंधों की यह जीवंत परंपरा, उनकी दी हुई विरासत है—विश्वास, सहयोग और साझा समृद्धि की अमिट कहानी।


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