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राष्ट्रीय हिंदी दिवस

राष्ट्रीय हिंदी दिवस:



मातृभाषा का गौरव और सामाजिक एकता का प्रतीक-

राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर हर साल 14 सितंबर को पूरे भारतवर्ष में विशेष आयोजन किए जाते हैं। यह दिन हिंदी भाषा के महत्व और उसकी वैश्विक पहचान को उजागर करने के लिए समर्पित है। हिंदी, जो भारत की सबसे व्यापक रूप से बोली और समझी जाने वाली भाषा है, केवल हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को भारत सरकार की कार्यकारी भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदी दिवस का मुख्य उद्देश्य देशभर में हिंदी के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना और इसकी उपयोगिता पर ध्यान केंद्रित करना है।


हिंदी भाषा न केवल भारतीय जनमानस की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि यह एक ऐसी सेतु भी है जो विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और संस्कृतियों के बीच समन्वय स्थापित करती है। आज के आधुनिक युग में वैश्वीकरण की प्रक्रिया के चलते अनेक विदेशी भाषाएं और तकनीकी शब्दावली हिंदी में भी समाहित हो रही है। इसके बावजूद हिंदी ने अपनी सरलता, अभिव्यंजकता और सौंदर्य को बनाए रखते हुए समाज के हर वर्ग में अपनी विशेष जगह बनाई है। सरकारी कार्यालयों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों, साहित्यिक मंचों और दैनिक संवाद तक, हिंदी भाषा हर जगह अपना योगदान देती है।


राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर पूरे देश में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों और महाविद्यालयों में निबंध प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, कविता पाठ, संवाद गोष्ठी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों और नागरिकों में हिंदी के प्रति सम्मान और प्रेम को प्रोत्साहित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं भी सेमिनार, कार्यशाला, वेबिनार आदि का आयोजन करती हैं, ताकि हिंदी भाषा के विकास और उसे बढ़ावा देने के नए-नए उपायों पर विचार-विमर्श हो सके।


आज के समय में तकनीकी क्रांति और डिजिटल मीडिया के युग में हिंदी ने नए आयाम प्राप्त किए हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, ब्लॉग, डिजिटल समाचार पत्र और यूट्यूब जैसे माध्यमों ने हिंदी को एक व्यापक डिजिटल पटल पर स्थापित कर दिया है। इसके चलते हिंदी भाषी लोगों को अपने विचार, जानकारी और रचनात्मकता को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में हिंदी के प्रभाव से लोग अपनी स्थानीय समस्याओं, सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक विरासत को व्यापक रूप से साझा कर पा रहे हैं।


फिर भी, हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई चुनौतियां भी हैं। अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और अनेक युवा अंग्रेजी को प्राथमिक भाषा के रूप में अपनाने लगे हैं। ऐसे में आवश्यक है कि हम हिंदी को केवल एक सरकारी भाषा के रूप में न देखें, बल्कि इसे अपनी पहचान, संस्कृति और दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। हिंदी के माध्यम से हमारी विविधता एकता में बदलती है, जो भारत की सबसे बड़ी ताकत है। प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपनी मातृभाषा का सम्मान करे, उसे संजोए और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाए।


राष्ट्रीय हिंदी दिवस के अवसर पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हिंदी भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे। हमें अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व महसूस करते हुए उसके उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। हिंदी साहित्यकारों, कवियों, शिक्षकों, पत्रकारों और सामान्य नागरिकों ने हिंदी भाषा के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है, जिनका हम सम्मान करें। यही कारण है कि राष्ट्रीय हिंदी दिवस सिर्फ एक औपचारिक दिन नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान, भाषाई गौरव और राष्ट्र की एकता का प्रतीक बन गया है।

राष्ट्रीय हिंदी दिवस के संदर्भ में साहित्यकारों के रचनात्मक योगदान को समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि उनकी कविताएँ और लेख हिंदी भाषा की गहराई, सुंदरता और भावनात्मक सम्पदा को उजागर करते हैं। हिंदी साहित्य ने समाज की समस्याओं, प्रेम, देशभक्ति, मानवता और आध्यात्मिकता जैसे विषयों पर अनेक अमूल्य रचनाएँ दी हैं, जो आज भी लोगों के हृदय को छूती हैं। आइए, कुछ प्रमुख साहित्यकारों की कविताओं और लेखों के उद्धरण के माध्यम से हिंदी भाषा के महत्व को समझते हैं।

महाकवि हरिवंश राय बच्चन की प्रसिद्ध कविता "अग्निपथ" आज भी साहस, संघर्ष और दृढ़ निश्चय का प्रतीक मानी जाती है। उन्होंने लिखा है—

"वृक्ष हों भले खड़े, हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत।"

यह पंक्तियाँ हमें सिखाती हैं कि आत्मनिर्भरता और संघर्ष की राह पर चलना ही मानव जीवन की सच्ची उन्नति है। हिंदी साहित्य की इस प्रेरणादायक अभिव्यक्ति ने अनगिनत लोगों को अपने संघर्ष में साहस प्रदान किया है।

प्रसिद्ध साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर की कविता "सिंहासन खाली करो" भी भारतीय समाज के उत्थान और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाती है। उन्होंने लिखा है—

"सिंहासन खाली करो जनता आती है,
देश फिर से खुद को आजाद कराता है।"

यह कविता भारतीय लोकतंत्र में जनता की शक्ति और जिम्मेदारी को उजागर करती है। हिंदी साहित्य ने समाज के हर पहलू को उजागर कर उसे संवेदनशीलता और व्यावहारिकता से अभिव्यक्त किया है।

साहित्यकार महादेवी वर्मा ने महिलाओं के संवेदनशील अनुभवों को अभिव्यक्त करते हुए हिंदी कविता को एक नई दिशा दी। उनकी कविता से एक पंक्ति उद्धृत करना उचित रहेगा—

"मैं अकेली ही सही,
अपने विचारों के संग,
विरह और प्रेम की बात करूँ।"

महादेवी वर्मा की यह अभिव्यक्ति हिंदी साहित्य में स्त्री जागरूकता और आत्म-सम्मान की मिसाल बनी हुई है।

इसके अलावा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', और सुमित्रानंदन पंत जैसे साहित्यकारों ने भी हिंदी कविता, निबंध और आलोचना में अमूल्य योगदान दिया है। जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ भारतीय संस्कृति के गौरव, आध्यात्मिकता और मनोविज्ञान का गहरा चित्रण करती हैं। उनके शब्दों में छिपा दर्शन, आज भी हिंदी भाषी समाज के विचारों को मार्गदर्शित करता है।

लेखकों की दृष्टि से रामचंद्र शुक्ल और धर्मवीर भारती जैसे पत्रकार और आलोचक भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अग्रणी रहे हैं। उन्होंने न केवल साहित्य को गंभीरता से प्रस्तुत किया, बल्कि हिंदी को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श का प्रमुख माध्यम भी बनाया। धर्मवीर भारती का लेखन समाज के बदलाव की दिशा में सोचने पर मजबूर करता है। उनके विचार इस प्रकार हैं—

"साहित्य समाज की आत्मा है, और हिंदी उसकी अभिव्यक्ति।"

इन कविताओं और लेखों से स्पष्ट होता है कि हिंदी सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति है जो समाज को जागरूक करती है, सोचने पर विवश करती है और परिवर्तन के लिए प्रेरित करती है। राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम इन साहित्यिक रचनाओं से सीख लेकर हिंदी भाषा को हर दिन और अधिक विकसित करेंगे, ताकि यह भारतीय समाज की संस्कृति, गौरव और एकता का अमिट हिस्सा बनी रहे।


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