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गोदान (मुंशी प्रेमचंद)


 

आशुतोष प्रताप "यदुवंशी" की समीक्षा:-

गोदान(उपन्यास):

 

मुंशी प्रेमचंद का एक महान उपन्यास है, जिसे भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह उपन्यास 1936 में प्रकाशित हुआ था और भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है।

कथा और विषयवस्तु:

उपन्यास की मुख्य कथा होरी नामक एक निर्धन किसान के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने जीवन में गरीबी, शोषण, और सामाजिक अन्याय का सामना करता है। होरी का सपना है कि वह एक गाय खरीदे, जिसे भारतीय ग्रामीण जीवन में संपत्ति का प्रतीक माना जाता है। यह गाय उसे सम्मान और आत्म-सम्मान दिलाने का माध्यम बन सकती है। लेकिन, अपनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद वह यह सपना पूरा नहीं कर पाता और उसके जीवन में अनगिनत संकट आते हैं।

कहानी में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों – गरीब किसान, सामंती व्यवस्था, मंहगाई, धार्मिक अंधविश्वास, और दलितों की स्थिति – को दर्शाया गया है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास के माध्यम से भारतीय ग्राम्य जीवन की सच्चाई को सामने रखा और समाज में व्याप्त असमानता, भ्रष्टाचार और सामाजिक कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया।

पात्र:

  • होरी: उपन्यास का नायक, जो अपने जीवन की कठोरतम परिस्थितियों में भी संघर्ष करता है और अपने परिवार की भलाई के लिए हर संभव प्रयास करता है।
  • धनिया: होरी की पत्नी, जो अपने पति के संघर्ष में साझीदार है और परिवार के लिए हमेशा समर्पित रहती है।
  • गोविन्द: होरी का बेटा, जो अपनी स्थिति से भागकर शहर में काम करने की कोशिश करता है, लेकिन वह भी समाज के दबावों से बच नहीं पाता।
  • रूपा: होरी की बेटी, जो एक महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिका निभाती है।

सामाजिक आलोचना:

प्रेमचंद ने उपन्यास के माध्यम से उस समय के भारतीय समाज की जटिलताओं और कुरीतियों को उजागर किया। उन्होंने इस उपन्यास में निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया:

  • किसान की स्थिति: होरी का संघर्ष किसानों की गरीबी और शोषण का प्रतीक है।
  • सामाजिक असमानता: अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, जमींदारी प्रथा और उसका शोषण।
  • धार्मिक अंधविश्वास: होरी और उसकी पत्नी द्वारा किए गए धार्मिक कृत्य समाज के दिखावे और अंधविश्वास की आलोचना करते हैं।

लेखन शैली:

प्रेमचंद की लेखन शैली सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली है। उन्होंने ग्रामीण जीवन के दृश्य और पात्रों को बहुत सजीवता से प्रस्तुत किया है। उनका मानवतावादी दृष्टिकोण और सामाजिक यथार्थवाद उपन्यास को बेहद प्रभावी बनाते हैं।

निष्कर्ष:

गोदान न केवल एक उपन्यास है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण समाज की एक गहरी और ईमानदार आलोचना है। यह न केवल एक व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह उस समय की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का भी प्रतिबिंब है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास के माध्यम से भारतीय समाज की गहरी आलोचना की और इसे बदलने की आवश्यकता को उजागर किया। इस उपन्यास को पढ़ने से न केवल साहित्यिक आनंद मिलता है, बल्कि यह सामाजिक संवेदनाओं और जागरूकता को भी बढ़ाता है।

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