अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस 1 मई को पूरे भारत में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (मजदूर दिवस) अत्यंत श्रद्धा, गर्व और जोश के साथ मनाया गया। इस दिन देश के एक अद्वितीय व्यक्तित्व को समर्पित किया जाता है, जो अपने परिश्रम, परिश्रम और कठिन परिश्रम के बल पर भारत की प्रगति और समृद्धि की स्थापना को मजबूत बनाते हैं। उद्यमियों के योगदान को याद किया गया और उन्हें प्रतिष्ठित किया गया। इतिहास की झलक: संघर्ष से अधिकार तक का सफर श्रमिक दिवस की शुरुआत वर्ष 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में हुई, जब श्रमिकों ने आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम और आठ घंटे निजी जीवन के सिद्धांत का आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन धीरे-धीरे एक वैश्विक समाज में शामिल हो गया और 1 मई को दुनिया भर में अल्पसंख्यकों के अधिकार का प्रतीक दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। भारत में इसे पहली बार 1923 में चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में मनाया गया था। वर्चुअल रेलवे एवं जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन देश के विभिन्न कलाकारों में श्रमिक श्रमिक, यूनियन और सोशल सोसायटी रैलियां निकाली गईं, जिनमें हजारों उद्यमियों ने भाग लिया। इनमें रेलवे के म...
The creative novels PART- 1 (सपनों का सागर) "सपनों का सागर" आजकल के ज़माने में किसी के पास समय नहीं होता। समय के साथ हम भी अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन जब कभी भी हम अपनी पुरानी यादों में खो जाते हैं, तो हमें लगता है कि हम कहीं खो गए हैं, लेकिन सच तो यह है कि हम वही हैं, जो कभी थे। यही कहानी है एक ऐसे लड़के की, जिसका नाम अजय था। अजय एक छोटे से गाँव में रहता था। गाँव की हवाओं में एक अजीब सा खुमार था, जो हर किसी को अपने में समाहित कर लेता। यह गाँव न तो बहुत समृद्ध था, और न ही बहुत पिछड़ा, लेकिन यहाँ के लोग एक-दूसरे से सच्चे और सीधे दिल से जुड़े थे। अजय का दिल भी वैसा ही था – सच्चा और बिना किसी छल-कपट के। अजय की सबसे बड़ी कमजोरी थी उसका सपनों में खो जाना। वह दिन-रात अपनी कल्पनाओं में खोया रहता था। उसे लगता था कि इस छोटे से गाँव के बाहर एक विशाल दुनिया है, जहाँ न कोई डर है और न कोई चिंता। वह बार-बार सोचता, "क्या होगा अगर मैं अपनी कल्पनाओं को हकीकत बना सकूं?" गाँव में एक पुराना तालाब था। अजय अक्सर वहीं बैठा करता था और घंटों तक उस पानी की लहरों को देखता रहत...