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The creative novels PART - 3

 



सिंहासन की छाया



अध्याय 1: संघर्ष का आरंभ

अरविंद कुमार ने आँखें बंद कीं और धीरे से गहरी सांस ली। उस गाँव की यादें आज भी उसके दिल में ताजा थीं, जहाँ से उसकी यात्रा शुरू हुई थी। सच्चाई के साथ राजनीति में कदम रखने का सपना, वह गाँव की गलियों और खेतों में चलते हुए देखा करता था।

गाँव के छोटे से घर में पला-बढ़ा अरविंद, किसी समय संघर्षों से जूझता हुआ, अब राज्य की राजनीति के सबसे बड़े मंच पर खड़ा था। उसकी आँखों में एक ठानी हुई भावना थी, एक उम्मीद, जो उसे भ्रष्टाचार और तानाशाही से लड़ने के लिए प्रेरित करती थी।

"क्या तुम तैयार हो?" उसके साथी और विश्वासपात्र, रघु ने पूछा, जो उसके साथ था।

अरविंद ने सिर झुकाया, और फिर चुपचाप बाहर का दृश्य देखने लगा।

राजधानी के छावनी क्षेत्र में उसकी कार पहुंची, जहाँ उसका पहला महत्वपूर्ण संबोधन था। मंच पर खड़ा अरविंद, एक सच्चे नेता के रूप में उभरने की उम्मीदों के साथ, विशाल सिंह जैसे दिग्गजों से मुकाबला करने के लिए तैयार था।

"आज से कुछ वर्षों पहले, हम में से अधिकांश का मानना था कि राजनीति सिर्फ एक खेल है, जहाँ ताकत और पैसा ही महत्वपूर्ण हैं। लेकिन यह समय का सच नहीं है। आज, हम एक नई राजनीति का आगाज़ कर रहे हैं, जो भ्रष्टाचार, अन्याय, और असमानता से मुक्त होगी।"

सभी लोग उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। लेकिन क्या यह केवल एक भाषण था, या इसमें कुछ और था, इस सवाल ने उसके अंदर भी कई उथल-पुथल मचा रखी थी। क्या वह सच में अपने शब्दों को पूरा कर पाएगा? क्या वह उन ताकतों से पार पा सकेगा, जो सत्ता में बैठे हैं और जनता की उम्मीदों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं?

अध्याय 2: विशाल सिंह का दबदबा

विशाल सिंह, राज्य के सबसे पुराने और प्रभावशाली नेताओं में से एक था। उसका नाम किसी चुनावी हलफनामे से ज्यादा बड़ा था। उसकी पहुँच पुलिस, प्रशासन, और मीडिया तक थी। उसने राज्य के हर कोने में अपने प्रभाव का जाल फैला रखा था। किसी भी विपक्षी को उठने का मौका देना उसकी राजनीति का हिस्सा नहीं था।

अरविंद और विशाल के बीच की दूरी अब बढ़ती जा रही थी। अरविंद का ताजातरीन भाषण सुनकर विशाल सिंह को गहरी चिंता हो रही थी। यह एक संकेत था कि अरविंद अब उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला था।

विशाल सिंह अपने कार्यालय में बैठा था, और सामने उसके दो विश्वासपात्र मंत्री, रवींद्र यादव और मोहनलाल खन्ना, खड़े थे।

"इस युवक को समझना पड़ेगा, कि वह हमें चुनौती देकर बहुत बड़ी गलती कर रहा है।" विशाल ने गुस्से में कहा।

"लेकिन उसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है।" रवींद्र ने कहा। "लोग उसे नायक मान रहे हैं। अगर हम उसे दबाने की कोशिश करेंगे, तो यह और भी उल्टा पड़ सकता है।"

"हमारे पास ताकत है। हम मीडिया, पुलिस और अदालतों से खेल सकते हैं।" विशाल ने आत्मविश्वास से कहा। "अगर उसे रास्ते से हटाना पडे़, तो हम उसे हटा देंगे।"

"हमारे पास हर तरीका है।" मोहनलाल ने गंभीरता से कहा।

विशाल सिंह का दिमाग किसी यांत्रिक उपकरण की तरह काम कर रहा था। वह अरविंद के खिलाफ हर चाल चलने के लिए तैयार था। लेकिन यह लड़ाई सिर्फ सत्ता की नहीं थी, यह सत्ता के रास्ते पर पड़ी हर असमानता और भ्रष्टाचार के खिलाफ थी।

अध्याय 3: पत्रकारिता का संघर्ष

आशिमा मलिक, एक प्रमुख पत्रकार और आलोचक, जिसने हमेशा सत्ता के गलत पक्ष को उजागर किया था, अरविंद के साथ इस नई राजनीति के मुहिम में शामिल हो गई।

"आप सिर्फ एक आदमी नहीं, एक आंदोलन हैं," आशिमा ने कहा, जब उसने अरविंद से पहली बार मुलाकात की थी। "लोग आपके साथ हैं, लेकिन यह यात्रा आसान नहीं होगी।"

अरविंद ने सिर झुकाया। "मैं जानता हूँ, लेकिन अगर हम इस रास्ते पर आगे बढ़े, तो लोग जानेंगे कि हम सच के साथ खड़े हैं।"

आशिमा की कलम से निकली रिपोर्ट्स ने कई बार सत्ता के काले धंधों को बेनकाब किया था। अब वह और अरविंद, दोनों मिलकर विशाल सिंह की राजनीति को चुनौती देने के लिए तैयार थे।

"राजनीति को साफ़ करना कोई आसान काम नहीं है," आशिमा ने कहा, "लेकिन अगर आप सही रास्ते पर हैं, तो जनता आपके साथ है।"


यह उपन्यास "सिंहासन की छाया" एक गहरी और सामयिक कहानी की नींव रखता है, जिसमें राजनीति, भ्रष्टाचार, और संघर्ष के तत्वों का अनूठा मिश्रण है। इसे और अधिक विस्तृत करने के लिए, हम कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को जोड़ सकते हैं:


अध्याय 4: संघर्ष की नब्ज

अरविंद और आशिमा की साझेदारी से राजनीतिक दृश्य में हलचल मच गई थी। मीडिया में अरविंद के भाषणों का प्रसारण होता और पत्रकारों की कलमें विशाल सिंह के शासन के काले पक्ष को उजागर करतीं।

लेकिन, इस सबके बावजूद, विशाल सिंह की सत्ता के खिलाफ खड़ा होना कोई साधारण बात नहीं थी। अरविंद जानता था कि मीडिया और जनता की समर्थन से वह शायद उसे चुनौती दे सके, लेकिन विशाल के पास सत्ता और गहरे कनेक्शन थे जो किसी भी विरोधी को कुचलने की ताकत रखते थे।

"हम सिर्फ सत्य नहीं, एक सपना बेच रहे हैं," आशिमा ने कहा। "लोगों को विश्वास दिलाना होगा कि बदलाव संभव है।"

अरविंद की स्थिति अब और भी जटिल हो गई थी। उसके कदमों के निशान विपक्षी पार्टियों और भ्रष्ट तंत्र द्वारा बार-बार विरोध के रूप में उभरने लगे थे। अब यह लड़ाई केवल एक नेता और दूसरे के बीच नहीं, बल्कि जनता और सत्ता के बीच की थी।


अध्याय 5: विशाल सिंह की योजना

विशाल सिंह, जिसे अब अरविंद के उभरते सितारे से खतरा महसूस हो रहा था, ने अपनी राजनीति को और भी कुचले जाने वाले तरीकों से चलाने की योजना बनाई। उसने अपनी ज़िंदगी में कई बार कुटिल चालें चली थीं, और अब भी उसके पास अपने विरोधियों को नष्ट करने के कई तरीके थे।

विशाल सिंह ने दो खास रणनीतिकारों को अपने पक्ष में किया था: रवींद्र और मोहनलाल। रवींद्र अधिकतर पुलिस और जमीनी नेटवर्क का नियंत्रण रखता था, जबकि मोहनलाल मीडिया और जनसंपर्क में माहिर था।

"हम अब इनको कमजोर नहीं, तोड़ देंगे," विशाल ने गहरी हंसी के साथ कहा। "जो जो हमारे रास्ते में आएगा, उसे दबाना हमारी नीति है।"

उसे पता था कि अरविंद की बढ़ती हुई लोकप्रियता से अगर कुछ हुआ तो वो सड़कों तक आ सकता है। इसलिए, उसने एक और चाल चली — उसकी छवि को नकारात्मक रूप में पेश करने के लिए उसे भ्रष्टाचार से जोड़ने की कोशिश की।


अध्याय 6: जनता की आवाज

अरविंद ने महसूस किया कि वह केवल एक अकेला व्यक्ति नहीं था जो इस संघर्ष में खड़ा था। उसके साथ सैकड़ों हजारों लोग थे, जो उसका समर्थन कर रहे थे। गाँव-गाँव, शहर-शहर, यह आवाज़ अब सुनाई देने लगी थी। एक नई उम्मीद और परिवर्तन की लौ जल उठी थी।

"यह बदलाव हम सभी का है," अरविंद ने अपनी एक सभा में कहा। "यह सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो असमानता, भ्रष्टाचार और अन्याय से पीड़ित है।"

यह बयान केवल एक भाषण नहीं था; यह एक शपथ था, जिसे अरविंद ने अपने अंदर और अपने समर्थकों के दिलों में बसा लिया था।

लेकिन संघर्ष अभी जारी था। उसे अपनी नीतियों को साबित करने के लिए और भी संघर्षों का सामना करना था।


अध्याय 7: साजिश का पर्दाफाश

विशाल सिंह अब अपनी छवि को बचाने के लिए कुछ नया करने की योजना बना रहा था। उसने एक साजिश रची जिसमें अरविंद के खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए। एक पुराने दोस्त, जो अरविंद के साथ काम करता था, उसे फंसा दिया गया। मीडिया में इसे लीक किया गया और एक बड़ी स्कैंडल की तरह पेश किया गया।

"अगर अरविंद को हम गिरा नहीं पाए, तो यह हमें नष्ट कर देगा," रवींद्र ने विशाल से कहा। "हमारे सारे प्लान ध्वस्त हो जाएंगे।"

परन्तु इस बार अरविंद ने अपनी बुद्धिमानी से उन आरोपों को नकार दिया। उसने आशिमा की मदद से उन तथ्यों को सामने लाया जो विशाल के खिलाफ सबूत के रूप में काम आए।

"यह केवल एक आरोप नहीं, यह एक साजिश थी," अरविंद ने अपने समर्थकों से कहा। "हमारे खिलाफ उठाया गया हर कदम हमें और मजबूत बनाएगा।"


अध्याय 8: निर्णायक संघर्ष

अब अरविंद के लिए समय आ चुका था कि वह विशाल सिंह के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध लड़े। चुनावों की घोषणा हो चुकी थी, और यह चुनाव केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि एक आंदोलन का रूप ले चुका था।

"हम इस चुनाव में सिर्फ एक पार्टी को नहीं, एक प्रणाली को बदलने के लिए खड़े हैं," अरविंद ने अपने अंतिम चुनावी भाषण में कहा।

विशाल सिंह ने अपनी हर ताकत को झोंक दिया था, लेकिन अरविंद ने अपने सत्य और जनता के विश्वास से उसे हराया। चुनाव परिणाम ने यह साबित किया कि अगर जनता का समर्थन सच्चाई के साथ हो, तो कोई भी ताकत उसे हराने के लिए पर्याप्त नहीं होती।


अध्याय 9: सिंहासन की छाया

अरविंद के सत्ता में आने के बाद, एक नया युग शुरू हुआ। उसने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कड़े कदम उठाए, और राजनीति में सचाई और न्याय को प्राथमिकता दी।

लेकिन वह जानता था कि संघर्ष कभी खत्म नहीं होता। सत्ता की छाया हमेशा बनी रहती है। और जब भी कोई व्यक्ति सच के रास्ते पर चलता है, उसके सामने नए संघर्ष खड़े हो जाते हैं।

"यह शुरुआत है," अरविंद ने सोचा। "हमने सिंहासन की छाया को चुनौती दी है, लेकिन रास्ता लंबा है।"


अध्याय 10: अंधेरे की ताकतें

अरविंद की सरकार ने कई अहम सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाए थे, लेकिन जैसे ही सत्ता पर बैठा वह देख रहा था कि हर कदम पर अंधेरे ताकतें, जो पहले सत्ता में थीं, उसे दबाने की कोशिश कर रही थीं। भ्रष्टाचार, दलाल, और पुलिस प्रशासन की गहरी जड़ें राज्य के तंत्र में फैली हुई थीं, जो नए बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रही थीं।

विशाल सिंह की हार के बाद वह सत्ताधारी वर्ग, जो अब तक सत्ता का स्वाद चखता रहा था, अब चुपके से अपने नेटवर्क को पुनः मजबूत करने में जुटा हुआ था। वह जानता था कि अगर उसने जल्द ही कोई कड़ा कदम नहीं उठाया तो यह नई सरकार भी उसी राह पर चल पड़ेगी।

"मैंने यह सच्चाई के नाम पर किया है, लेकिन अब मुझे उस सच्चाई को बचाने के लिए और भी अधिक सतर्क रहना होगा," अरविंद ने अकेले अपने दफ्तर में बैठे हुए सोचा। "सिर्फ भाषण और योजनाओं से काम नहीं चलेगा, मुझे अपने कदम हर समय मजबूत और सटीक रखने होंगे।"


अध्याय 11: तंत्र का खेल

अरविंद के साथ काम कर रहे कुछ पुराने साथियों ने अब धीरे-धीरे उसे चेतावनी देना शुरू कर दिया था कि बदलाव के लिए उसे सिस्टम के भीतर की खामियों को समझने की जरूरत है। राज्य के प्रशासन में घुसी हुई सत्ता और धन की ताकतें लगातार उसकी योजनाओं को कमजोर कर रही थीं।

"अरविंद, अगर तुम सचमुच बदलाव लाना चाहते हो तो आपको प्रशासन के भीतर के तंत्र को पूरी तरह से तोड़ने की जरूरत होगी," रघु ने एक बैठक में कहा। "हमारे पास जो भी शक्तियां हैं, उन सबका विरोध सिर्फ सड़कों तक नहीं, बल्कि सिस्टम के भीतर होना चाहिए।"

अरविंद ने उसकी बात मानी। वह समझ गया था कि अगर उसने उन पुराने तंत्रों को सटीक तरीके से नहीं तोड़ा तो वह बस एक और खोखली राजनीतिक ध्वजा बन जाएगा।

उसने प्रशासन के भीतर के भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओं और दलालों की पहचान करना शुरू किया। इसके लिए उसने आशिमा की मदद ली, जो अब उसकी टीम का अहम हिस्सा बन चुकी थी।


अध्याय 12: जाल का जाल

विशाल सिंह ने अपने पुराने नेटवर्क को सक्रिय कर दिया था। उसका अगला कदम था, अरविंद को और उसकी सरकार को अस्थिर करना। उसने अपनी पुरानी ताकतों को फिर से सुसज्जित किया और उन पर दबाव डालकर कुछ ऐसा माहौल तैयार किया, जिसमें अरविंद की सरकार असफल दिखे।

विशाल ने एक नया खेल शुरू किया: अफवाहों और झूठे आरोपों का जाल। उसे यह मालूम था कि मीडिया उसकी तरफ है और वह आसानी से उन अफवाहों को जनता तक पहुँचा सकता था।

"अगर मैं अरविंद की छवि को घृणा से जोड़ दूं, तो जनता का विश्वास कमजोर होगा," विशाल सिंह ने अपने मंत्री मोहनलाल से कहा। "हमने उसे हराया, लेकिन अब उसे मानसिक रूप से तोड़ना है।"

विशाल की यह रणनीति काफी प्रभावी हो रही थी। जनता के बीच अफवाहें फैलने लगीं, और अरविंद की ईमेज पर सवाल उठने लगे। हालाँकि, अरविंद ने इस बार मीडिया के सामने खड़े होकर जवाब दिया और अपने समर्थकों से यह कहा कि कोई भी सच्चाई को झूठ से दबा नहीं सकता।

"जो लोग हमारी नीयत को गलत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, वह खुद अपने झूठ के जाल में फंसने वाले हैं," अरविंद ने एक सभा में कहा। "हमें अपने रास्ते से नहीं भटकना है।"


अध्याय 13: टूटते रिश्ते

अरविंद की सफलता ने उसके कुछ पुराने सहयोगियों को भी असहज कर दिया था। कई राजनेताओं और साथियों का मानना था कि अब अरविंद का आत्मविश्वास और ताकत उन्हें अपार नियंत्रण की ओर ले जा रहा था। वे उसकी बढ़ती हुई शक्ति को खतरे के रूप में देख रहे थे।

"तुम अब पुरानी राजनीति से बाहर निकल आए हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम अकेले सब कुछ कर सकते हो," रघु ने एक दिन गुस्से में आकर कहा। "तुमने हमसे सलाह नहीं ली, और अब तुम अपने आप में विश्वास करने लगे हो। यह खतरनाक हो सकता है।"

अरविंद के सामने यह स्थिति पहली बार आई थी, जहां उसे अपनी व्यक्तिगत राजनीति और टीम के भीतर के रिश्तों के बीच संतुलन बनाना था। उसे यह समझने में समय लगा कि कभी-कभी सच्चाई और नीति के नाम पर भी उन रिश्तों को नुकसान पहुँच सकता है, जिन पर आप सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं।

"रघु, अगर मुझे आगे बढ़ना है तो मुझे अपने रास्ते पर अकेला भी चलना होगा। लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि हमारे बीच कुछ भी टूटे," अरविंद ने गहरी साँस ली। "मैं चाहता हूँ कि हम सब साथ चलें, लेकिन अगर हमें रास्ता बदलना पड़ा, तो हमें यही करना होगा।"


अध्याय 14: युद्ध की तैयारी

अब, अरविंद जान चुका था कि उसके खिलाफ सिर्फ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह एक युद्ध था। एक युद्ध जो न केवल सत्ता के लिए था, बल्कि सिद्धांत और मूल्यों के लिए था।

वह अपनी पूरी टीम को एकजुट करके एक नयी रणनीति तैयार करने में लगा था, जिसमें सरकारी तंत्र के भीतर सुधार, पुलिस व्यवस्था में बदलाव और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम शामिल थे। उसने एक जन आंदोलन की योजना बनाई, जिसमें लाखों लोगों को सड़कों पर उतारने का विचार था।

"यह सिर्फ एक चुनावी युद्ध नहीं होगा," अरविंद ने अपने साथियों से कहा। "यह हमारे सिद्धांतों और जनता की आवाज का युद्ध होगा। और इस युद्ध में कोई भी हमारा साथ देने से पीछे नहीं हटेगा।"


अध्याय 15: अंतिम मुकाबला

अरविंद का आंदोलन अब चरम पर था। उसने पूरी ताकत से जनता को संगठित किया और विशाल सिंह की सत्ता को खात्मे की ओर अग्रसर किया। यह संघर्ष सिर्फ एक राजनीतिक शक्ति का नहीं था, बल्कि यह सत्य, न्याय और असमानता के खिलाफ था।

जैसे ही चुनाव का दिन आया, अरविंद और विशाल के बीच की लड़ाई ने समूचे राज्य को हिला दिया। लोग, मीडिया, और प्रशासन सभी इस संघर्ष की परिणति के इंतजार में थे।

"आज हम एक नई राजनीति का जन्म देखेंगे," अरविंद ने अंतिम भाषण में कहा। "हम जो शुरुआत करेंगे, वह हर उस सत्ता को चुनौती देगा जो भ्रष्टाचार के लिए खड़ी है।"

जैसे ही चुनाव परिणाम घोषित हुए, यह साफ़ हो गया कि अरविंद की राह की कठिनाइयों के बावजूद, उसकी सरकार ने जीत हासिल की। विशाल सिंह का साम्राज्य ढह चुका था। अब एक नई सरकार का आगाज़ हो चुका था, जहां जनता की आवाज, सत्य और न्याय की प्रमुखता थी।

अरविंद ने सत्ता संभालने के बाद यह सुनिश्चित किया कि वह हर कदम सही दिशा में उठाए। उसने अपनी नीतियों को लागू करने के साथ-साथ भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई की। लेकिन वह जानता था कि राजनीति में हर दिन एक नया संघर्ष होता है, और उसे अपने सिद्धांतों को बनाए रखना ही असली जीत होगी।

"हमने सिंहासन की छाया को चुनौती दी," अरविंद ने सोचते हुए कहा। "लेकिन अब हमें भविष्य के लिए एक सशक्त, न्यायपूर्ण और समान राज्य की ओर कदम बढ़ाने होंगे।"


अध्याय 16: सत्ता के दबाव में

अब जब अरविंद सत्ता में था, उसे कई नई चुनौतियाँ सामने आ रही थीं। सरकार चलाना किसी आंदोलन की तरह आसान नहीं था। उन सब विरोधियों और पुराने तंत्रों के खिलाफ अभियान चलाना, जिनकी जड़ें बहुत गहरी थीं, उतना ही कठिन था जितना उसने सोचा था।

राज्य के प्रशासन में कई भ्रष्ट अधिकारी थे जो अब भी अपने पुराने तरीकों से काम कर रहे थे। अरविंद को यह समझ में आ गया कि इस व्यवस्था को बदलने के लिए सिर्फ कानून और नीति नहीं, बल्कि एक गहरी सोच और रणनीति की आवश्यकता थी।

"हर बदलाव की शुरुआत छोटे-छोटे कदमों से होती है," अरविंद ने अपने मंत्रिमंडल की बैठक में कहा। "हमारे पास वक्त बहुत कम है, लेकिन जनता ने जो हमें जिम्मेदारी दी है, उसे हमें निभाना होगा।"

वह जानता था कि हर दिन, हर कदम के साथ वह खुद पर और अपनी सरकार पर दबाव बढ़ाता जा रहा था। उसे ना सिर्फ विशाल सिंह की साजिशों से बचना था, बल्कि अपने प्रशासन के भीतर के उन भ्रष्ट तंत्रों को भी खत्म करना था, जो सत्ता के गलियारों में छिपे हुए थे।


अध्याय 17: विश्वासघात और धोखा

अरविंद का सामना तब हुआ जब उसके अपने कुछ करीबी सहयोगियों ने उसके खिलाफ साजिशें शुरू कर दीं। सत्ता में आने के बाद, कुछ पुराने मित्रों को लगा कि अरविंद का तेजी से बढ़ता हुआ प्रभाव उनके लिए खतरे की घंटी बन सकता है। वे अपनी सत्ता और शक्ति को बनाए रखने के लिए कई चालें चलने लगे।

रघु, जो पहले अरविंद का सबसे विश्वसनीय सहयोगी था, अचानक उसे नजरअंदाज करने लगा। इसने अरविंद को एक गहरे संकट में डाल दिया।

"तुम क्या कर रहे हो, रघु?" अरविंद ने एक दिन गुस्से में कहा। "तुम मेरा साथ छोड़ क्यों रहे हो?"

रघु ने सिर झुकाए बिना कहा, "तुम्हारे रास्ते अब अलग हो गए हैं, अरविंद। तुम्हारी राजनीति अब बहुत कठोर हो गई है। तुम जो सोचते हो, वह अब पहले जैसा नहीं है।"

अरविंद को यह सुनकर गहरा धक्का लगा। वह जानता था कि सत्ता के भीतर विश्वासघात बहुत आम होता है, लेकिन फिर भी यह बुरी तरह उसे चोट पहुंचा रहा था।

"यह वही रास्ता है, जिस पर हम चलने का वादा कर चुके हैं। क्या तुम अब भी नहीं समझ रहे हो?" अरविंद ने आखिरी बार रघु से कहा, लेकिन वह समझ नहीं पाया।


अध्याय 18: मीडिया और जनसमर्थन

इस बीच, मीडिया के दबाव से भी अरविंद की सरकार संघर्ष कर रही थी। विशाल सिंह के पुराने सहयोगियों ने मीडिया को अपने पक्ष में किया था, और हर दिन अरविंद के खिलाफ नई खबरें उड़ने लगीं। हालांकि, अरविंद को मीडिया के इस खेल से अच्छी तरह अवगत था।

आशिमा, जो अब उसके सबसे बड़े समर्थकों में से एक बन चुकी थी, ने यह तय किया कि उन्हें मीडिया के खेल को अपनी ओर मोड़ने की जरूरत है। आशिमा ने कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट तैयार कीं, जो जनता के बीच अरविंद के प्रयासों को सही तरीके से पेश करती थीं।

"हमें उन्हें दिखाना होगा कि हम सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि असल परिवर्तन के लिए लड़ रहे हैं," आशिमा ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा। "तुम्हारी सरकार में जो भी बदलाव हो रहे हैं, वह कोई साधारण घटना नहीं हैं।"

अरविंद को आशिमा की बातों ने उम्मीद दी, और उसने मीडिया से जुड़ी अपनी रणनीति पर काम करना शुरू किया। उसने जनसभाओं का आयोजन किया, जिसमें जनता से सीधे संवाद किया गया, ताकि उन तक सही जानकारी पहुंचे।


अध्याय 19: सड़कों पर उथल-पुथल

अरविंद के द्वारा उठाए गए सुधारों ने कुछ वर्गों में असंतोष पैदा कर दिया था। खासकर वे लोग, जिन्होंने सत्ता के दौरान व्यक्तिगत लाभ कमाए थे, अब बुरी तरह से घबराए हुए थे।

एक दिन, सड़कों पर प्रदर्शन बढ़ने लगे। छोटे व्यापारियों और कुछ उद्योगपतियों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया, यह आरोप लगाते हुए कि अरविंद की नीतियाँ उनके व्यापार को नुकसान पहुँचा रही हैं।

"हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, या तो यह सरकार हमारे अस्तित्व को खत्म कर देगी, या हम इस बदलाव के खिलाफ खड़े हो जाएंगे," एक प्रमुख व्यापारी ने सार्वजनिक रूप से कहा।

अरविंद को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह केवल विरोध नहीं था, बल्कि यह उन शक्तियों का कृत्य था जो अपने लाभ को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस विरोध को शांत करना आसान नहीं था, क्योंकि इसमें वे लोग शामिल थे जिनके पास पब्लिक सपोर्ट था।

"हमें इन विरोधों का सामना करना होगा, लेकिन हमें यह दिखाना होगा कि हम जो कर रहे हैं वह जनता के भले के लिए है," अरविंद ने अपने मंत्रिमंडल से कहा।


अध्याय 20: झूठ के खिलाफ सच्चाई की लड़ाई

अरविंद को यह महसूस हुआ कि उसकी सरकार को उस स्तर के हमलों का सामना करना पड़ा था, जिनकी उसने कभी कल्पना नहीं की थी। मीडिया और विरोधियों ने उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने की कोशिश की, और अफवाहें फैला दीं कि वह सत्ता में आने के बाद वही गलती करने वाला है जो पहले नेताओं ने की थी।

यह समय था जब अरविंद को अपने सिद्धांतों को साबित करने का मौका मिला। उसने अपनी सरकार के हर कदम को पारदर्शी बनाने की योजना बनाई और किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की घोषणा की।

"सच्चाई हमारे साथ है," अरविंद ने एक सार्वजनिक भाषण में कहा। "हम कोई गलत कदम नहीं उठाएंगे, और इस सत्ता को कभी भी निजी लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे।"

उसने अपने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे पारदर्शिता सुनिश्चित करें और जनता को हर फैसले से अवगत कराएं।


अध्याय 21: बदलते समीकरण

चुनाव के बाद जब अरविंद ने सुधारों की प्रक्रिया को तेज़ किया, तो उसने धीरे-धीरे राज्य की राजनीति में एक नई हवा पैदा की। लोग अब सत्ता से नाराज नहीं थे, बल्कि वे देख रहे थे कि उनकी सरकार में बदलाव हो रहा था।

राज्य में सुधारों का असर अब धीरे-धीरे दिखने लगा था। भ्रष्टाचार, जो कई वर्षों से राज्य के तंत्र में फैला हुआ था, अब कमजोर होने लगा था। राज्य की पुलिस और न्याय व्यवस्था में सुधार हुआ। अब नागरिकों को न्याय मिलने में पहले से कहीं अधिक समय नहीं लगता था।

"यह बदलाव एक युद्ध की तरह था, लेकिन हम जीत गए," अरविंद ने अपने मंत्रियों से कहा। "यह हमारी शुरुआत है, और हम इसी रास्ते पर चलते हुए देश को दिखाएंगे कि सच्चाई और संघर्ष से कोई भी सत्ता कभी भी अपनी जगह खो सकती है।"


अध्याय 22: अंत की शुरुआत

अरविंद को अब यह समझ में आ चुका था कि राजनीति एक निरंतर युद्ध है, जहां हर दिन नई चुनौतियाँ आती हैं। वह जानता था कि यह केवल शुरुआत थी। उसके लिए सत्ता का असली अर्थ था, लोगों की सेवा करना, न कि खुद के लिए किसी ताज की प्राप्ति।

"हमने सिर्फ सिंहासन की छाया को चुनौती दी थी," अरविंद ने एक दिन सोचा। "अब हमें उस छाया को पूरी तरह से मिटा देना है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इसे कभी न देख सकें।"

यह उसके संघर्ष की शुरुआत थी, और वह पूरी तरह से तैयार था, हर झूठ और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए।


अध्याय 23: लोकसभा चुनाव की तैयारी

अरविंद की सरकार अब धीरे-धीरे अपनी नींव मजबूत कर रही थी। लेकिन सत्ता के इस संघर्ष में अब एक और बड़ी चुनौती सामने थी—लोकसभा चुनाव। चुनाव अब एक निर्णायक मोड़ बन गए थे, जहाँ अरविंद को अपनी नीतियों और सिद्धांतों को जनता के सामने सिद्ध करना था।

"यह सिर्फ राज्य की राजनीति का सवाल नहीं है," अरविंद ने एक बैठक में अपने मंत्रियों से कहा। "यह पूरे देश के भविष्य का सवाल है। हम जो बदलाव यहाँ कर रहे हैं, उसे पूरे देश तक पहुंचाना है।"

अरविंद का संदेश अब केवल राज्य तक सीमित नहीं था, बल्कि वह पूरे देश में एक बदलाव की आवश्यकता को महसूस कर रहा था। उसकी सरकार में जो बदलाव हो रहे थे, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी फैलाने के लिए वह लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गया।

इस दिशा में उसकी सबसे बड़ी मदद मिली आशिमा से, जो मीडिया और जनता के बीच एक मजबूत कड़ी बन चुकी थी। आशिमा ने सशक्त तरीके से मीडिया में अरविंद के कामों की उपलब्धियों को प्रमुखता दी, और यह सुनिश्चित किया कि जनता को सही जानकारी मिले।

"अगर हम लोकसभा चुनाव जीतना चाहते हैं, तो हमें सिर्फ सत्ता पर काबिज होने के लिए नहीं, बल्कि जनता के बीच विश्वास और भरोसा जीतने के लिए लड़ना होगा," आशिमा ने एक बैठक में कहा। "हमें दिखाना होगा कि हम सच्चे नेता हैं, जो वास्तव में बदलाव लाना चाहते हैं।"


अध्याय 24: चुनावी युद्ध

लोकसभा चुनाव की तारीख पास आते ही राजनीतिक माहौल गरमाने लगा। विशाल सिंह और उसके समर्थक, जो अब भी विभिन्न राज्यों में ताकतवर थे, ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। उनका सबसे बड़ा हथियार था—भ्रष्टाचार का मुद्दा।

"अरविंद ने क्या किया? उसने जनता को धोखा दिया," विशाल सिंह के समर्थक मीडिया में इसे फैलाने लगे। "वह एक अच्छे नेता नहीं, बल्कि एक और ढोंगी है, जो सिर्फ राजनीति के नाम पर जनता से झूठ बोल रहा है।"

अरविंद के लिए यह समय अपने सिद्धांतों और जनता के समर्थन को सही साबित करने का था। वह जानता था कि विशाल सिंह की तरह नेताओं का खेल केवल आरोप और झूठ के आधार पर चलता है, लेकिन उसे सच्चाई के रास्ते पर चलना था।

इस दौरान, उसकी टीम ने चुनावी रैलियाँ आयोजित कीं, जहां अरविंद ने जनता से सीधे संवाद किया। उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाया, और साथ ही यह बताया कि वह आने वाले समय में क्या बदलाव लाएंगे।

"हमने जो किया, वह सिर्फ राज्य के लिए नहीं, बल्कि हर एक नागरिक के लिए किया," अरविंद ने एक रैली में कहा। "हमने भ्रष्टाचार को खत्म किया, हमने न्याय की प्रणाली को मजबूत किया, और अब हम देश में बदलाव लाने के लिए तैयार हैं।"


अध्याय 25: एक नई उम्मीद

लोकसभा चुनाव में जैसे-जैसे समय बढ़ रहा था, अरविंद की लोकप्रियता और विश्वास का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा था। जनता उसे एक ऐसे नेता के रूप में देख रही थी, जो उनके हितों की रक्षा करने के लिए तैयार था। जबकि विशाल सिंह और उसके साथी हर स्तर पर उसका विरोध कर रहे थे, जनता का समर्थन अरविंद के पक्ष में साफ़ तौर पर दिखने लगा।

एक दिन, चुनावी रैली के बाद, अरविंद ने अपनी टीम से कहा, "यह हमारी अंतिम लड़ाई नहीं है, बल्कि यह शुरुआत है। हमारी जीत हमें और जिम्मेदारी देती है।"

अब उसे यह महसूस हो रहा था कि सत्ता में आने के बाद उसका असली काम शुरू होगा। राज्य के भीतर के बदलावों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ उसे कड़ी रणनीतियों पर काम करना था।

"अगर हमें यह बदलाव लाना है, तो हमें हर मोर्चे पर लड़ाई लानी होगी," अरविंद ने अपने सहयोगियों से कहा। "यह सिर्फ सत्ता का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण का संघर्ष है।"


अध्याय 26: चुनावी परिणाम

चुनाव का दिन आया। देशभर में लोग अपने-अपने मतदान केंद्रों पर गए, और रातभर की कड़ी मेहनत के बाद चुनाव परिणाम घोषित हुए। अरविंद की पार्टी ने शानदार जीत हासिल की थी। विशाल सिंह और उसके समर्थक जहां ध्वस्त हो चुके थे, वहीं अरविंद की पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी।

"हमने यह लड़ाई जीत ली," अरविंद ने चुनावी नतीजों के बाद घोषणा की। "लेकिन यह जीत सिर्फ हमारे लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो सच, न्याय और समानता के पक्ष में खड़ा था।"

इस परिणाम ने न केवल अरविंद को सत्ता दी, बल्कि उसकी नीतियों और संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी दिलाई। अब उसका लक्ष्य था—उस विश्वास को साकार करना जो लाखों लोगों ने उसमें और उसकी पार्टी में दिखाया था।


अध्याय 27: सत्ता के सच

अरविंद ने अब खुद को और अपनी पार्टी को एक नई जिम्मेदारी के तहत तैयार किया था। सत्ता में आने के बाद उसे यह समझ में आ गया था कि सिर्फ कड़े फैसले और योजनाएँ लागू करने से काम नहीं चलता। राजनीति में सच्चाई, पारदर्शिता और जिम्मेदारी की आवश्यकता थी।

"हमने यह सत्ता प्राप्त की है, लेकिन यह सिर्फ सत्ता का खेल नहीं है," अरविंद ने अपने मंत्रिमंडल की बैठक में कहा। "यह एक विश्वास का मामला है। अगर हम सच्चाई के साथ चलेंगे, तो लोग हमें हमेशा अपना नेता मानेंगे।"

वह जानता था कि सत्ता में आने के बाद उसे सबसे बड़ी चुनौती उन नीतियों को साकार करना था, जिनका उसने चुनावी भाषणों में वादा किया था। भ्रष्टाचार को खत्म करना, न्याय व्यवस्था को सशक्त बनाना, और विकास की सच्ची प्रक्रिया को बढ़ावा देना उसके प्रमुख लक्ष्यों में शामिल थे।


अध्याय 28: शुरुआत की सच्चाई

अरविंद के लिए यह कोई अंत नहीं था। उसने सत्ता में आने के बाद देखा कि बदलाव एक लंबी प्रक्रिया थी। उसमें तात्कालिक सफलता और असफलताओं के साथ, एक स्थायी सुधार के लिए निरंतर संघर्ष करने की आवश्यकता थी।

"हमने सिंहासन की छाया को चुनौती दी थी," अरविंद ने सोचा। "अब हमें यह सुनिश्चित करना है कि भविष्य में कोई भी नेता सत्ता के नाम पर इस छाया का पालन न करे। हम केवल एक नीति नहीं, बल्कि एक मिशन के रूप में काम करेंगे।"

अरविंद ने यह समझ लिया था कि हर सत्ता का अंत नहीं होता, लेकिन उसका उद्देश्य और दिशा तय होती है। राजनीति की सच्चाई यह थी कि उसका सबसे बड़ा संघर्ष उस सच्चाई के लिए था, जो उसने जनता से वादा किया था। और इस यात्रा में उसे सिर्फ सिंहासन की छाया को हटाना नहीं था, बल्कि एक नई राजनीतिक परिपाटी स्थापित करनी थी, जो सच्चाई, पारदर्शिता और सेवा पर आधारित हो।

"यह शुरुआत है," उसने मन ही मन कहा। "सच्चाई की शुरुआत।"


अध्याय 29: सत्तारूढ़ होने के बाद

अरविंद के लिए सत्ता में आने का मतलब था केवल राजनीतिक जीत नहीं, बल्कि वह एक बड़ी जिम्मेदारी थी—उन वादों को साकार करने की जिम्मेदारी, जो उसने जनता से किए थे। सत्ता पाने के बाद, उसने सबसे पहले अपने मंत्रिमंडल के साथ मिलकर उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया, जहां सुधार की सबसे अधिक आवश्यकता थी: शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई।

"हमारा काम अब सिर्फ सत्ता में बने रहने का नहीं है," अरविंद ने अपने मंत्रियों से कहा। "हमें सच्चे लोकतंत्र की दिशा में काम करना है, जहां हर व्यक्ति को न्याय मिले, हर नागरिक को उसके अधिकार मिलें।"

अरविंद की सरकार ने सबसे पहले पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत लोकपाल प्रणाली लागू की, ताकि सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार को आसानी से पकड़ा जा सके। इसके साथ ही, उन्होंने राज्य के अस्पतालों और स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाओं की घोषणा की।

हालाँकि, यह सब एक संघर्ष था। पुराने तंत्र से जुड़े कई लोग अब भी बदलावों के खिलाफ खड़े थे, और उनकी नफरत को अरविंद बखूबी महसूस कर रहा था।


अध्याय 30: विपक्ष और अंदरूनी विरोध

विपक्ष में बैठे नेताओं ने भी अरविंद की सरकार को हर स्तर पर चुनौती देना शुरू कर दिया था। जहां एक ओर विशाल सिंह और उसके समर्थक उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ खोखले वादे करने का आरोप लगा रहे थे, वहीं दूसरी ओर कुछ पूर्व सहयोगी और राजनीतिक दल भी उसकी नीतियों के खिलाफ बोलने लगे थे।

"वह हमारी नीतियों को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। हम किसी कीमत पर उसे सफल नहीं होने देंगे," विशाल सिंह ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा। "अगर वह हमें नहीं हरा सकता, तो हम उसे घेर कर ही दम लेंगे।"

अरविंद की सरकार पर मीडिया में भी हमले बढ़ने लगे थे। पुराने पत्रकार और मीडिया समूह, जो पहले विशाल सिंह के समर्थक थे, अब उसे निशाना बनाने लगे थे। हर दिन उसकी नीतियों पर नए आरोप लगाए जा रहे थे, और हर निर्णय पर सवाल उठाए जा रहे थे। लेकिन अरविंद ने कभी हार नहीं मानी।

"हम सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं, और हमें किसी से डरने की जरूरत नहीं है," अरविंद ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से कहा। "यह समय है, जब हम जनता के विश्वास को सच्चे कामों से मजबूत करेंगे।"


अध्याय 31: राजनीतिक युद्ध का तीव्र होता रूप

राज्य के भीतर और राज्य से बाहर, अरविंद के खिलाफ साजिशें लगातार बढ़ने लगीं। कुछ पूर्व सहयोगी, जो पहले तक उसके साथ थे, अब उसे सत्ता के खिलाफ बोलने लगे थे। वे यह आरोप लगाने लगे थे कि अरविंद का रुख अब बहुत कठोर हो गया है, और उनकी नीतियाँ छोटे व्यवसायियों, किसानों और सामान्य जनता के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं।

अरविंद जानता था कि यह उसकी सरकार के खिलाफ एक संगठित हमले का हिस्सा था, जिसे रोकना आसान नहीं था। वह जानता था कि कुछ कदम ऐसे होंगे जिनसे असंतोष फैल सकता था, लेकिन उसने तय किया कि वह किसी भी कीमत पर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगा।

"हमारा संघर्ष सिर्फ सत्ता के लिए नहीं है। यह एक विश्वास का युद्ध है," अरविंद ने अपने करीबी साथियों से कहा। "हमें हर कदम पर अपनी नीतियों को सही साबित करना होगा।"

यह संघर्ष अब केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। यह उस विचारधारा का युद्ध बन चुका था जो अरविंद और उसकी सरकार ने अपनाई थी—भ्रष्टाचार के खिलाफ, पारदर्शिता के पक्ष में, और हर नागरिक को न्याय देने के लिए।


अध्याय 32: एक ऐतिहासिक फैसला

एक दिन, अरविंद को एक ऐसे फैसले की आवश्यकता महसूस हुई, जो उसकी सरकार की मजबूती को साबित कर सके और विपक्ष के हर हमले का मुंह तोड़ जवाब दे सके। यह फैसला था—विपक्षी नेताओं और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना जो भ्रष्टाचार में लिप्त थे।

यह एक ऐतिहासिक कदम था, क्योंकि अब तक किसी भी सरकार ने इस तरह की कठोर कार्रवाई नहीं की थी। अरविंद ने अपने प्रशासन से सभी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच और कार्रवाई करने की योजना बनाई।

"यह उनका समय है। वे अब तक जो सत्ता का गलत इस्तेमाल कर रहे थे, अब उनका हिसाब होगा," अरविंद ने अपने मंत्रियों से कहा। "हम किसी को भी नहीं छोड़ेंगे, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो।"

इस फैसले ने राज्य में तूफान मचा दिया। कई पुराने नेता, जो अब तक सुरक्षित थे, अचानक निशाने पर आए। अरविंद की सरकार ने उन सभी के खिलाफ जांच शुरू कर दी। यह कदम न केवल राज्य के तंत्र में सुधार लाने के लिए था, बल्कि यह भी एक संदेश था कि वह किसी को भी भ्रष्टाचार के लिए नहीं छोड़ेगा।


अध्याय 33: आशिमा का योगदान

आशिमा मलिक, जो अब अरविंद की सरकार का अहम हिस्सा बन चुकी थी, इस पूरे अभियान में उसकी सबसे बड़ी सहयोगी बन गई। उसने मीडिया के जरिए जनता को बताया कि यह कदम क्यों जरूरी था। उसकी रिपोर्टों ने देशभर में एक नई जागरूकता का माहौल बनाया।

"अरविंद की सरकार ने जो कदम उठाए हैं, वह एक ऐतिहासिक बदलाव की ओर बढ़ने का संकेत हैं। यह समय है जब हमें अपने नेताओं से सवाल पूछने होंगे और उन्हें उनके कर्मों के लिए जिम्मेदार ठहराना होगा," आशिमा ने एक विशेष कार्यक्रम में कहा।

आशिमा के साहसिक और सच्चे रिपोर्टिंग ने न केवल अरविंद की नीतियों को सही साबित किया, बल्कि वह मीडिया की दुनिया में एक सशक्त आवाज बन चुकी थी।


अध्याय 34: संघर्ष की आंधी

जब अरविंद की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अभियान को तेज़ किया, तो यह साफ़ हो गया कि कोई भी सत्ता इस अभियान से बच नहीं सकती। हर दिन नए खुलासे हो रहे थे, और हर कदम पर अरविंद को विपक्ष की कड़ी प्रतिक्रिया मिल रही थी।

"तुम्हारी नीतियों ने राज्य को तोड़ दिया है," विपक्षी नेता चिल्लाते थे। "तुमने सिर्फ अपनी राजनीति के लिए लोगों का जीवन मुश्किल बना दिया है!"

लेकिन अरविंद की एक ही प्रतिक्रिया थी—"हम किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार और असमानता से लड़ेंगे।"

यह संघर्ष अब केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि यह एक नए समाज के निर्माण का संघर्ष बन चुका था, जहां लोग सत्ता के खेल से मुक्त होकर एक दूसरे के साथ सच्चाई और समानता से जी सकें।


अध्याय 35: नया समाज, नया भविष्य

अरविंद ने महसूस किया कि यह संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा। सत्ता में रहकर, उसे यह समझ में आया कि हर कदम पर परिवर्तन की आवश्यकता होती है, और हर दिन कुछ नया सीखने की प्रक्रिया जारी रहती है।

"हमने जो बदलाव शुरू किया है, वह एक यात्रा है, जो कभी खत्म नहीं होगी।" अरविंद ने अपने मंत्रिमंडल से कहा। "हमें इसे एक मिशन के रूप में देखना है, न कि सिर्फ एक राजनीतिक उपलब्धि के रूप में।"

अब अरविंद की नजरें भविष्य पर थीं। वह जानता था कि राजनीति के भीतर बदलाव लाने का यह पहला कदम है, लेकिन असली काम जनता के विश्वास को कायम रखना और सच्चाई के पक्ष में लगातार खड़ा रहना था।

"सिंहासन की छाया" को चुनौती देने का संघर्ष अब अंत तक नहीं पहुंचा था। यह तो बस एक नई शुरुआत थी, जो समय के साथ बढ़ती जाएगी।


अंतिम विचार: सत्य की ओर एक यात्रा

अरविंद की यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया था कि सत्ता, जब सही दिशा में प्रयोग की जाती है, तो वह जनकल्याण के लिए एक सशक्त साधन बन सकती है। उसकी संघर्षों और फैसलों ने उसे एक सच्चे नेता के रूप में स्थापित किया, जिसने सत्ता के शीर्ष पर होते हुए भी अपने सिद्धांतों को कभी नहीं छोड़ा।

यह कहानी केवल राजनीति तक सीमित नहीं थी; यह सत्य और न्याय के संघर्ष, विश्वास और समर्पण की कहानी थी—एक यात्रा, जो कभी समाप्त नहीं होती, क्योंकि हर सच्चाई के बाद एक और सत्य सामने आता है।


अध्‍याय 36: संकट और अवसर

अरविंद की सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को लेकर कई शक्तिशाली विरोधी बन चुके थे, और यह संघर्ष और भी तीव्र हो गया। लेकिन इस कठिन दौर में, अरविंद ने संकटों को अवसर में बदलने की कला को पूरी तरह से अपनाया। सत्ता में रहते हुए भी, वह निरंतर जनता से संवाद करते रहे, अपने फैसलों की सच्चाई को उजागर करते रहे और विपक्ष के हर हमले को शांतिपूर्वक और समझदारी से झेलते रहे।

"यह समय हमें कमजोर नहीं करेगा, बल्कि मजबूत बनाएगा," अरविंद ने अपने मंत्रिमंडल से कहा। "हमें यह दिखाना है कि हम किसी दबाव के सामने झुकने वाले नहीं हैं।"

राज्य में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। कुछ लोग तो सड़कों पर उतर आए थे, क्योंकि वे मानते थे कि सरकार की नीतियाँ उनके जीवन को प्रभावित कर रही थीं। किसानों और छोटे व्यापारियों को कुछ फैसले कठिनाई में डाल रहे थे। लेकिन अरविंद ने स्थिति को सही दिशा में मोड़ने के लिए कई मंचों पर जनता से बात की और उनके मुद्दों को समझा।

"हम केवल आपको योजनाएं नहीं दे रहे हैं, हम आपके साथ खड़े हैं," उसने एक सभा में कहा। "हमें यह सुनिश्चित करना है कि हर निर्णय आपके भले के लिए लिया जाए, और हम किसी भी तरह से आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे।"

यह संवाद और जनता की परेशानियों को समझने का तरीका था, जो उसे एक सशक्त नेता के रूप में उभारता था। उसकी ईमानदारी और निष्ठा ने धीरे-धीरे विरोधी विचारधाराओं में भी संशय और विचार की एक नई धारा शुरू कर दी।


अध्‍याय 37: विपक्ष की नई रणनीति

विपक्ष ने अब अपने पुराने आरोपों के अलावा एक नई रणनीति अपनाई। उन्होंने अरविंद की सरकार के सुधारों को 'पॉपुलिस्ट' (जनप्रिय) और 'सतही' बताया, और यह तर्क दिया कि जिन बदलावों को वह ला रहे थे, वे केवल दिखावा थे और इनसे समाज के लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों का स्थायी समाधान नहीं हो सकता।

"क्या यह सही है कि वह सिर्फ जनता को खुश करने के लिए फैसले ले रहे हैं? क्या यह सिर्फ एक चुनावी हथकंडा नहीं है?" विशाल सिंह ने एक जनसभा में कहा। "वे जो कर रहे हैं, उससे केवल अस्थायी राहत मिल सकती है, और फिर वही पुराने सिस्टम लौट आएंगे।"

विपक्ष का यह आरोप कुछ हद तक असर डालने लगा था, क्योंकि समाज के कुछ हिस्से ऐसे थे जो सोचते थे कि अरविंद की नीतियाँ केवल 'तत्काल' परिणामों के लिए थीं, और उनके पास दीर्घकालिक समाधान नहीं थे। यह अरविंद के लिए एक चुनौती बन गया। लेकिन उसने अपनी नीति में सुधार किया और अपने मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श करके हर फैसले के पीछे एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखने पर जोर दिया।

"हम सिर्फ वर्तमान की नहीं, भविष्य की चिंता कर रहे हैं। हर नीति एक लंबे सफर की शुरुआत है, जो इस राज्य को एक बेहतर जगह बनाएगी।" अरविंद ने अपनी टीम से कहा।


अध्‍याय 38: आशिमा का नया दृष्टिकोण

आशिमा मलिक के लिए भी यह समय एक चुनौती था। उसने अपने पत्रकारिता करियर के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखे थे, लेकिन इस बार उसे सरकार के फैसलों की सच्चाई और विपक्ष के आरोपों को समझते हुए एक नई जिम्मेदारी का एहसास हुआ। वह अब केवल रिपोर्टिंग नहीं कर रही थी, बल्कि वह जनता की आवाज बन चुकी थी, और उसकी सच्चाई को सही तरीके से पेश करना और भी महत्वपूर्ण हो गया था।

"यह केवल सरकार का काम नहीं है, यह हम सभी का काम है कि हम समाज में बदलाव लाने के इस सफर को सही दिशा दें," आशिमा ने एक कार्यक्रम में कहा। "हमें यह समझना होगा कि हर कदम पर हमें सही और गलत का अंतर स्पष्ट रूप से पहचानना होगा।"

आशिमा ने अपने पत्रकारिता के माध्यम से उन असल मुद्दों को उजागर किया, जो सरकार की योजनाओं से पहले अनदेखे थे। छोटे व्यापारियों से लेकर किसानों तक, हर तबके की समस्याओं को उसने सुना और उन पर रिपोर्टिंग की। यह उसे और भी ताकतवर बनाता गया, क्योंकि लोग उसे एक ईमानदार और निडर पत्रकार के रूप में पहचानने लगे थे।


अध्‍याय 39: निर्णायक मोड़

यह संघर्ष अब निर्णायक मोड़ पर आ चुका था। अरविंद की सरकार ने एक अहम कदम उठाया—विपक्षी नेताओं और कुछ पूर्व मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर जांच तेज की। यह निर्णय न केवल अरविंद की सरकार की कठोर नीति का संकेत था, बल्कि यह विपक्ष और मीडिया दोनों को यह संदेश भी दे रहा था कि वह किसी से नहीं डरता।

इस कदम से राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई। विरोधियों ने इसे 'राजनीतिक प्रतिशोध' कहकर उसकी आलोचना की, लेकिन अरविंद ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया।

"हम सिर्फ विरोधियों को नहीं, बल्कि भ्रष्ट तंत्र को चुनौती दे रहे हैं। अगर हमें गलत साबित किया गया, तो हम जिम्मेदारी लेंगे, लेकिन यह फैसला हमारे सिद्धांतों से जुड़े हुए हैं।" अरविंद ने अपने समर्थकों से कहा।


अध्‍याय 40: जनता की ताकत

कई महीनों के संघर्ष के बाद, अरविंद को यह एहसास हुआ कि राजनीति सिर्फ फैसलों तक सीमित नहीं है। असल ताकत जनता के समर्थन में है। जहां विपक्षी नेता और आलोचक इस सरकार को खत्म करने की कोशिश कर रहे थे, वहीं जनता ने अपना समर्थन जारी रखा।

"हम उनके खिलाफ नहीं, बल्कि एक बेहतर राज्य बनाने के लिए लड़ रहे हैं," अरविंद ने एक सभा में कहा। "हमने जो शुरुआत की है, वह अब सिर्फ हमारी सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की लड़ाई बन चुकी है।"

जनता का समर्थन अरविंद की सरकार के लिए अब एक मजबूत आधार बन चुका था। सरकार ने कई बड़े सुधार किए, जो पहले असंभव माने जाते थे। इन सुधारों ने राज्य में नया आत्मविश्वास पैदा किया और सत्ता के नए नजरिए को स्थापित किया।


अध्‍याय 41: एक नई सुबह

अंततः, अरविंद की सरकार ने उन तमाम संघर्षों और आरोपों को पार करते हुए राज्य में बदलाव का एक नया अध्याय शुरू किया। जनता का विश्वास लगातार बढ़ा, और उसने अपने नेताओं से जो उम्मीदें लगाई थीं, वे पूरी होने लगीं।

"हमने जो शुरू किया था, वह अब एक नई सुबह का प्रतीक बन चुका है," अरविंद ने अपने मंत्रियों से कहा। "हमारी यात्रा खत्म नहीं हुई, बल्कि यह एक नई शुरुआत है।"

राज्य में बदलाव की बयार अब एक नई दिशा में चल रही थी—यह वह दिशा थी जो सच्चाई, पारदर्शिता, और समानता की ओर ले जाती थी।

यह कहानी, जैसे ही अगले अध्याय में नए संघर्षों और सफलताओं के साथ आगे बढ़ेगी, यह सिद्ध करेगी कि सच्ची सत्ता वह होती है, जो जनहित में होती है, और सच्चा नेता वह होता है, जो अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करता।

अध्‍याय 42: नई चुनौतियाँ और अनदेखे रास्ते

अरविंद की सरकार अब अपनी सफलता के शिखर पर थी, लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, सफलता के साथ नई चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो जाती हैं। सरकार की नीतियाँ और सुधार अब लोगों की उम्मीदों के साथ जुड़ी हुई थीं, और अगर इन सुधारों में एक भी कमी दिखी, तो उसे बहुत बड़े पैमाने पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ सकता था। यह दौर अरविंद के लिए एक नई परीक्षा का था—क्या वह अपनी नीतियों को और अधिक प्रगति की दिशा में ले जा पाएंगे, या फिर आलोचना की आंधी उसे गिरा देगी?

"अब तक हम जो कर चुके हैं, वह सिर्फ शुरुआत है," अरविंद ने एक बैठक में कहा। "हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम जनता की उम्मीदों को कायम रख सकें, और हर समस्या का समाधान लगातार ढूंढते रहें।"

चुनौतियाँ अब केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थ‍िक भी थीं। राज्य में कृषि संकट, बेरोज़गारी, और छोटे उद्योगों की समस्याएँ अभी भी मौजूद थीं। एक ओर जहां अरविंद ने बड़े सुधार किए थे, वहीं दूसरी ओर उसे यह भी महसूस हुआ कि सभी बदलावों का तात्कालिक असर हर व्यक्ति तक नहीं पहुंच रहा था। किसानों और छोटे व्यापारियों के लिए नीतियाँ प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पा रही थीं।

"यह सही है कि हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाए, लेकिन हमें अपनी नीतियों को और व्यवहारिक और सुलभ बनाना होगा," अरविंद ने कहा। "किसान और छोटे व्यापारी, जिनके लिए हम काम कर रहे हैं, अब भी संघर्ष कर रहे हैं। हमें उनके साथ खड़ा होना होगा।"


अध्‍याय 43: एक विभाजनकारी विचारधारा

इस समय तक, विपक्ष की राजनीति ने और भी तेज़ी पकड़ ली थी। उन्होंने सरकार के हर कदम पर सवाल उठाने की कोशिश की और यह आरोप लगाया कि अरविंद अपनी सरकार की छवि चमकाने के लिए बदलावों को लागू कर रहे हैं, जबकि असली समस्याओं से निपटने में नाकामयाब हो रहे हैं।

विशाल सिंह और उसके समर्थकों ने यह कहना शुरू किया कि अरविंद सरकार केवल मीडिया में सुर्खियों के लिए काम कर रही है और ज़मीन पर उसकी योजनाओं का कोई असर नहीं दिख रहा। विपक्ष ने यह प्रचारित किया कि सरकार अपनी नीतियों को सिर्फ चुनावी फायदे के लिए बदल रही है, बजाय इसके कि वह किसी दीर्घकालिक समाधान पर ध्यान दे।

"अरविंद ने जो शुरू किया था, वह सिर्फ एक सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश थी," विशाल सिंह ने एक सार्वजनिक भाषण में कहा। "उनके सुधार केवल दिखावे के हैं, और हम इसे जनता को समझाने में सफल होंगे।"

इस बार, यह आक्रमण अरविंद के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण था। उसे यह एहसास हुआ कि मीडिया और विपक्ष की सख्त आलोचनाओं का सामना करना होगा, लेकिन इस बार उसे न सिर्फ राजनीतिक रूप से, बल्कि सृजनात्मक रूप से भी प्रतिक्रिया देनी होगी। सरकार ने यह तय किया कि वह अपने सुधारों के प्रभाव का मूल्यांकन करेगी और किसी भी कमी को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाएगी।


अध्‍याय 44: सशक्त जनता की आवाज

इस दौर में, अरविंद और उसकी सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण समर्थन जनता का था। आशिमा मलिक की रिपोर्टिंग और उसके द्वारा उठाए गए मुद्दों ने अब राज्यभर में एक नई जागरूकता का निर्माण किया। वह पत्रकारिता में सिर्फ एक रिपोर्टर नहीं, बल्कि एक सशक्त आवाज बन चुकी थी, जिसने हर सरकार के निर्णय की सच्चाई को सामने लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसकी कहानियाँ अब केवल सूचना नहीं, बल्कि आंदोलन का रूप लेने लगी थीं।

"जो सरकारें सच का सामना नहीं करतीं, वे कभी मजबूत नहीं बन सकतीं," आशिमा ने एक इंटरव्यू में कहा। "अगर हम सच्चाई को स्वीकार करेंगे, तो ही सही बदलाव संभव होगा।"

आशिमा की रिपोर्टिंग ने न केवल अरविंद की सरकार की योजनाओं को सजीव किया, बल्कि वह जनता को यह एहसास दिलाने में सफल रही कि लोकतंत्र में हर नागरिक का अधिकार है कि वह अपने नेताओं से सवाल पूछे और उन्हें जिम्मेदार ठहराए। मीडिया की यह भूमिका अब पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण हो चुकी थी।


अध्‍याय 45: नए यथार्थ से जूझना

अरविंद और उसकी सरकार को यह अब समझ में आ गया था कि हर सुधार का सामना नहीं किया जा सकता। राज्य में छोटे और मध्यम व्यापारियों के लिए राहत की योजनाओं का विकास करना जरूरी था। उसे यह एहसास हुआ कि जो कागजों पर अच्छा लग रहा था, वह ज़मीन पर उतना प्रभावी नहीं था।

राज्य में एक नई आर्थिक नीति लागू करने का समय था, जो किसानों और छोटे व्यवसायियों को सीधे लाभ पहुँचा सके। अरविंद ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर गहन मंथन किया, और एक नई योजना बनाई, जिसमें छोटे कारोबारियों के लिए आसान कर्ज़ और किसानों के लिए बेहतर समर्थन योजनाएँ दी गईं।

"हम सिर्फ नारे नहीं लगा सकते," अरविंद ने अपने मंत्रियों से कहा। "हमें ठोस योजनाएँ बनानी होंगी, ताकि हर व्यक्ति को महसूस हो कि हम उनके साथ खड़े हैं।"


अध्‍याय 46: नई शुरुआत

अरविंद की सरकार ने अब उन नीतियों को लागू करना शुरू किया जिनसे राज्य के सामाजिक और आर्थिक ढांचे में बदलाव आए। एक नई कृषि नीति के तहत किसानों को आसान ऋण दिए जाने लगे, जबकि छोटे व्यापारियों को बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए राहत दी गई। इस नीति ने विपक्ष को एक बार फिर चुनौती दी थी, लेकिन इस बार अरविंद ने यह साबित किया कि उसके कदम न केवल राजनीति के लिए, बल्कि राज्य के विकास के लिए थे।

जनता का समर्थन और मीडिया का पक्ष, दोनों अब उसके साथ थे। लोग यह महसूस कर रहे थे कि अरविंद की सरकार ने उन्हें ध्यान में रखते हुए बदलाव किए थे। हालाँकि विपक्ष अभी भी अपनी आलोचना जारी रखे हुए था, लेकिन अब उसे अपनी आलोचनाओं का जवाब भी मिल रहा था।

"हमारा संघर्ष केवल सत्ता तक पहुँचने का नहीं था, बल्कि यह एक नए समाज के निर्माण का संघर्ष है," अरविंद ने अपने अंतिम भाषण में कहा। "हमारा लक्ष्य न सिर्फ सत्ता को हासिल करना था, बल्कि हर नागरिक की जिंदगी को बेहतर बनाना था।"


अध्‍याय 47: भविष्य की ओर

जैसे-जैसे अरविंद की सरकार अपने सुधारों में आगे बढ़ती गई, एक नई राजनीतिक और सामाजिक हवा राज्य में बहने लगी। उसने साबित कर दिया था कि अगर सिद्धांतों के साथ सत्ता का संचालन किया जाए, तो न केवल सत्ता में बदलाव आता है, बल्कि समाज में भी गहरे और स्थायी बदलाव संभव हैं।

अगला कदम अब और भी स्पष्ट था: "हमारा काम कभी खत्म नहीं होने वाला है," अरविंद ने एक आखिरी बार अपनी टीम से कहा। "हमें जनता के विश्वास को सच्चे कामों से सहेजना होगा, और यही असली सशक्तिकरण है।"

यह संघर्ष केवल सत्ता के लिए नहीं था, बल्कि यह समाज में उस नई विचारधारा के बीजारोपण का था, जहाँ न्याय, समानता और पारदर्शिता ही सबसे बड़े आदर्श बनें।

अध्‍याय 48: राज्य में नयापन की हवा

अरविंद की सरकार के द्वारा लागू की गई नीतियाँ अब धीरे-धीरे ज़मीन पर असर दिखाने लगी थीं। किसानों को मिली सहुलतें, छोटे व्यापारियों को मिले नए अवसर, और सरकारी तंत्र में आई पारदर्शिता ने जनता का भरोसा और भी मजबूत किया था। राज्य में बदलाव की बयार ने एक नई सोच को जन्म दिया, और हर व्यक्ति को यह महसूस होने लगा था कि अब उनके पास बदलाव का रास्ता है।

हालाँकि, यह यात्रा अब भी आसान नहीं थी। राज्य में कुछ हिस्सों में पुराने तंत्र से जुड़ी ताकतें और विचारधाराएँ अपनी पकड़ बनाए हुए थीं। इन शक्तियों ने राज्य में व्याप्त गहरी जड़ें और परंपराएँ ही नहीं, बल्कि अरविंद के सुधारों को भी चुनौती दी थी। हालांकि, अरविंद ने यह अच्छी तरह समझ लिया था कि परिवर्तन कभी भी सरल नहीं होता, और उसे जनता के विश्वास के साथ अपनी नीतियों का बचाव करना होगा।

"हमारा उद्देश्य सिर्फ कुछ बदलाव लाना नहीं है, बल्कि हम एक ऐसी राजनीति की नींव रख रहे हैं, जहाँ सभी को समान अवसर मिले," अरविंद ने एक सभा में कहा। "यह रास्ता कठिन है, लेकिन अगर हम सच्चाई के साथ खड़े रहेंगे, तो यह संघर्ष खुद ब खुद सफलता की ओर बढ़ेगा।"

जनता की भागीदारी अब केवल चुनावों तक सीमित नहीं थी। लोग अपने स्थानीय मुद्दों पर सरकार से सीधे संवाद करने के लिए उत्साहित थे। हर गाँव, हर छोटे शहर में संवाद की प्रक्रिया तेजी से बढ़ी। न केवल सत्ता, बल्कि विपक्ष भी इस बदलाव से हैरान था।


अध्‍याय 49: मीडिया और लोकतंत्र

आशिमा मलिक अब केवल एक पत्रकार नहीं रह गई थी, बल्कि वह एक संस्था बन चुकी थी। उसकी रिपोर्टिंग और विश्लेषण ने अरविंद की नीतियों को केवल एक दिशा नहीं दी, बल्कि उसने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी नये रूप में प्रस्तुत किया। मीडिया अब केवल खबरें नहीं देता था, बल्कि वह सरकार और विपक्ष के बीच का सेतु बन चुका था।

आशिमा के कई लेख और रिपोर्ट्स ने जनता में जागरूकता फैलाई, और वह लगातार जनता की आवाज़ के रूप में उभरती रही। उसने एक ऐसी पहल की, जिसमें लोगों को यह समझाने की कोशिश की गई कि लोकतंत्र केवल वोट देने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सक्रिय भागीदारी की भी आवश्यकता है।

"हम सिर्फ यह नहीं कह सकते कि सरकार को जिम्मेदार ठहराना हमारा काम है," आशिमा ने एक विशेष रिपोर्ट में कहा। "हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हुए सरकार की हर नीति की सही तरीके से आलोचना करनी होगी।"

उसकी रिपोर्टिंग ने न केवल अरविंद की सरकार के प्रति विश्वास को बढ़ाया, बल्कि जनता को भी यह समझने में मदद की कि यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है कि वे सरकार से सवाल करें और उसे जवाबदेह बनाए रखें।


अध्‍याय 50: विपक्ष की असमंजस स्थिति

हालाँकि विपक्ष ने बहुत प्रयास किए थे, लेकिन जनता के बीच अरविंद की सरकार की छवि लगातार मजबूत होती जा रही थी। अब विपक्ष को यह समझ में आ चुका था कि केवल आलोचना करने से सरकार को गिराया नहीं जा सकता। वह अब खुद एक दुविधा में था—अगर उसे फिर से जनता का समर्थन पाना है, तो उसे अपनी रणनीतियाँ बदलनी होंगी।

विशाल सिंह और उसके समर्थकों ने अब यह महसूस किया कि उनकी पुरानी रणनीतियाँ विफल हो चुकी थीं। वह अपने पुराने आरोपों को लेकर केवल अरविंद पर हमला करने से कुछ हासिल नहीं कर सकते थे। इसके बजाय, विपक्ष ने एक नया दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें उन्होंने सरकार की नीतियों के सकारात्मक पहलुओं को स्वीकार किया, लेकिन उनसे बेहतर और अधिक स्थायी समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश की।

"हम यह नहीं कह सकते कि सरकार पूरी तरह से गलत है," विशाल सिंह ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा। "हमें अब अपनी नीतियों को और स्पष्ट तरीके से पेश करना होगा, ताकि हम सरकार से एक बेहतर विकल्प दे सकें।"

विपक्ष ने अब सरकार से मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति बनाई। यह केवल आलोचना तक सीमित नहीं था, बल्कि वह अब एक वैकल्पिक राजनीतिक दृष्टिकोण और योजनाओं के साथ जनता के सामने आने की तैयारी कर रहे थे।


अध्‍याय 51: आंतरिक संघर्ष और समाधान

अरविंद की सरकार में भी आंतरिक संघर्ष कम नहीं थे। उसकी टीम में कुछ सदस्य, जो शुरुआत में उसकी नीतियों के प्रति समर्पित थे, अब उन नीतियों के व्यावहारिक पक्ष को लेकर आलोचनाएँ करने लगे थे। उन्हें यह महसूस होने लगा था कि बहुत अधिक सुधारों और योजनाओं को एक साथ लागू करना मुश्किल हो रहा था।

"हमारे सामने अब ज्यादा संकट हैं। ये फैसले ज़मीन पर प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। हमें ज्यादा ध्यान देना होगा," सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने निजी बैठक में कहा।

अरविंद ने यह संघर्ष समझा और एक ठोस समाधान की ओर कदम बढ़ाया। उसने अपनी टीम को यह समझाया कि हर कदम पर सरकार को समझदारी से और क्रमबद्ध तरीके से काम करना होगा।

"हम जो कर रहे हैं, वह आसान नहीं है," अरविंद ने अपनी टीम से कहा। "हमें सब्र रखना होगा और हर योजना की सफलता को सुनिश्चित करना होगा। अगर हम किसी कदम में गलती करते हैं, तो हमें इसे स्वीकार कर सुधारना होगा।"

इसने सरकार में एक नई दिशा दी। अरविंद ने अपनी टीम को सिखाया कि जब तक वे सच्चाई के साथ खड़े रहेंगे, तब तक उनके द्वारा किए गए बदलाव सही दिशा में ही होंगे।


अध्‍याय 52: भविष्य की ओर कदम

अरविंद और उसकी टीम अब भविष्य की ओर कदम बढ़ाने की सोच रही थी। राज्य में आर्थिक और सामाजिक सुधारों के साथ, अब वह अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल स्थापित करने की दिशा में सोचने लगे थे। उन्होंने तय किया कि अगले कुछ वर्षों में राज्य को आदर्श राज्य बनाना है, जहाँ समानता, पारदर्शिता और न्याय ही मुख्य आधार हों।

अरविंद ने कहा, "हमने जो शुरू किया है, वह अभी खत्म नहीं हुआ है। यह सिर्फ एक शुरुआत है। हर दिन एक नई चुनौती और एक नई सीख लेकर आएगा।"

अब सरकार ने अपनी योजनाओं को और भी सुदृढ़ किया। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के क्षेत्रों में और भी कई पहलें शुरू की गईं। राज्य में न केवल राजनीतिक बदलाव हो रहे थे, बल्कि समाज में भी एक नई चेतना का संचार हो रहा था।


अंतिम विचार: सत्य की यात्रा का अंत

अरविंद की यात्रा का यह अध्याय एक बदलाव की कहानी थी, जिसने न केवल सत्ता के शीर्ष पर एक व्यक्ति को बदला, बल्कि पूरे राज्य की विचारधारा और दृष्टिकोण को नया रूप दिया। यह कहानी केवल राजनीति की नहीं थी, बल्कि सच्चाई, समर्पण और विश्वास की यात्रा थी।

"सत्य और न्याय का रास्ता कभी आसान नहीं होता," अरविंद ने एक साक्षात्कार में कहा। "लेकिन यही रास्ता एक सशक्त और समृद्ध समाज की ओर ले जाता है।"

इस यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया था कि जब राजनीति सच्चाई, नैतिकता, और जनकल्याण के उद्देश्य से की जाती है, तो उसका परिणाम समाज में एक स्थायी और सकारात्मक बदलाव के रूप में सामने आता है।



निष्कर्ष:

यह एक प्रेरक और संघर्षपूर्ण कहानी है, जो यह दर्शाती है कि राजनीति केवल सत्ता की प्राप्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक लंबी यात्रा है, जो समाज में सच्चाई, न्याय और समानता स्थापित करने के उद्देश्य से की जाती है। अरविंद ने सत्ता में आते ही जिन बड़े सुधारों को लागू किया, वह केवल चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि एक मजबूत और समृद्ध समाज बनाने के लिए थे। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष, पारदर्शिता की दिशा में कदम, और समाज के कमजोर वर्गों के लिए योजनाएँ, ये सभी उसकी नीतियों के आधार थे।

हालाँकि, यह यात्रा सहज नहीं थी। उसे विपक्ष की आलोचनाओं, आंतरिक असंतोष और पुराने तंत्र से विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन अरविंद ने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उसने यह साबित किया कि जब सत्ता के साथ सच्चाई, ईमानदारी और जनहित को जोड़ा जाता है, तो न केवल राजनीति में, बल्कि पूरे समाज में बदलाव संभव है।

उसने यह भी समझा कि राजनीति का असली उद्देश्य लोगों के जीवन में सुधार लाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है। सुधारों को लागू करने में समय लगता है, और कभी-कभी असफलताओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन अगर जनविश्वास बनाए रखा जाए और हर कदम पर पारदर्शिता बनाए रखी जाए, तो सफलता मिलना निश्चित है।

आखिरकार, अरविंद ने यह सिद्ध कर दिया कि सत्ता का सही इस्तेमाल, अगर जनहित में हो, तो वह समाज को एक नए, बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकता है। उसकी यात्रा सिर्फ एक राजनीतिक यात्रा नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और विश्वास की यात्रा थी, जो हमें यह सिखाती है कि बदलाव कभी आसान नहीं होता, लेकिन अगर हम अपने सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहें, तो हम न केवल खुद को, बल्कि समाज को भी बदल सकते हैं।

  Copyright 

आशुतोष प्रताप "यदुवंशी"


The creative novels PART - 2


 

"तुमसे मिलकर..."



भाग 1 : पहली मुलाकात 

निशा अपनी ज़िंदगी में सुकून की तलाश में थी। एक छोटी सी नौकरी, एक छोटे से शहर में, जहाँ सब कुछ इतना सामान्य था कि कभी कभी वह सोचती थी कि क्या यही उसका भविष्य था? हर दिन वही दिनचर्या, वही रास्ते, वही लोग। लेकिन उस एक दिन सब कुछ बदल गया, जब वह उस कैफे में गई थी।

यह कैफे शहर के मुख्य रास्ते पर था, जहां लोग अपने दिन की शुरुआत करते थे। निशा ने हमेशा सोचा था कि इस कैफे का माहौल बहुत शांत और आरामदायक है। उस दिन भी वह अपनी कॉफी के साथ किताब पढ़ने आई थी, जैसे कि वह हमेशा करती थी। किताब को खोलते हुए उसकी आँखों ने एक नए चेहरे को देखा, जो पहले कभी वहाँ नहीं दिखा था।

वह लड़का, जिसे निशा ने देखा, थोड़ा सा अजनबी सा था, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था, जो उसे खींचता था। उसकी आँखों में एक गहरी उदासी थी, जैसे वह किसी तकलीफ से गुजर रहा हो। निशा का दिल कुछ अजीब सा महसूस हुआ, जैसे वह उसे जानती हो।

काफ़ी देर तक वह लड़का अकेला बैठा रहा, कभी अपनी कॉफी में खोया हुआ, कभी खिड़की से बाहर देखता हुआ। निशा ने सोचा था कि वह केवल कुछ पल के लिए ही कैफे में आएगा, लेकिन समय गुजरता गया, और वह लड़का वहीं बैठा रहा।

इसी बीच निशा की नजरें उस लड़के पर बार-बार जाती थीं। क्या वह उसे कुछ बोल सकती थी? क्या यह ठीक होता कि वह उस लड़के से बात शुरू करती? निशा के मन में कई सवाल थे, लेकिन किसी कारणवश वह उस लड़के से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। तभी अचानक वह लड़का उठकर निशा के पास आ गया और थोड़ा संकोच करते हुए बोला, "क्या मुझे आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?"

निशा चौंकी, क्योंकि वह तो खुद उसे देखकर बहुत आश्चर्यचकित थी। लेकिन उसने धीरे से कहा, "जी, बताइए।"

वह लड़का थोड़ी देर चुप रहा और फिर बोला, "क्या आप अक्सर यहाँ आती हैं?"

निशा को यह सवाल थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हां, कभी-कभी यहाँ आती हूँ।"

लड़के ने एक हल्की सी मुस्कान दी और फिर बोला, "मुझे लगता है, हम एक दूसरे को पहले कभी देख चुके हैं।"

निशा को यह सुनकर और भी आश्चर्य हुआ, "क्या आप मुझसे पहले मिले थे?"

लड़के ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, लेकिन आपकी आँखों में कुछ ऐसा है, जो मुझे पहले कहीं देखा सा लगता है।"

निशा को महसूस हुआ कि शायद यह महज संयोग नहीं था, वह लड़का उसके जीवन में किसी खास मकसद से आया था। यह सोचकर उसके दिल की धड़कन थोड़ी तेज़ हो गई।

भाग 2 : जुड़ी हुई कहानियाँ 

कुछ दिनों बाद, वह लड़का फिर उसी कैफे में दिखा। इस बार निशा ने खुद उसे देखा और कुछ मन में विचार किया। क्या वह फिर से उससे बात करेगी? क्या वह जानना चाहती थी कि वह लड़का कौन है, और क्यों उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह कहीं न कहीं उससे जुड़ा हुआ था?

अचानक, लड़के की नजरें फिर से उस पर पड़ीं। उसने हल्की सी मुस्कान दी और निशा से पूछा, "क्या हम बैठ सकते हैं?"

निशा थोड़ा चौंकी, लेकिन फिर मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "जी, बैठिए।"

अब दोनों के बीच बातचीत शुरू हो चुकी थी, और निशा को यह एहसास हुआ कि वह लड़का बहुत ही सच्चा और समझदार था। उसका नाम था आदित्य। वह एक लेखक था, जो अपनी किताबों पर काम कर रहा था। आदित्य ने निशा से अपने जीवन के कुछ हिस्सों के बारे में बताया, और साथ ही उसने बताया कि वह भी किसी बड़े बदलाव की तलाश में था।

निशा को आदित्य की बातें बहुत दिलचस्प लगीं। वह भी अपनी ज़िंदगी में एक बदलाव चाहती थी, लेकिन डरती थी कि क्या वह सही निर्णय ले पाएगी। आदित्य ने कहा, "कभी कभी हमें अपनी ज़िंदगी के कुछ हिस्सों को छोड़कर, नए रास्तों को अपनाने की जरूरत होती है।"

निशा ने इस बात को दिल से सुना। आदित्य से मिलकर उसे यह महसूस हुआ कि उसकी ज़िंदगी में कुछ नया होने वाला था।


भाग 3: नई राहों की तलाश 

कुछ दिन और बीत गए, लेकिन निशा की ज़िंदगी में आदित्य का असर अभी भी महसूस हो रहा था। वह हर दिन उसी कैफे में जाने लगी, उम्मीद करते हुए कि कहीं आदित्य वहाँ मिलेगा। उसके विचारों में वो लड़का हमेशा कहीं न कहीं मौजूद था। आदित्य की बातें, उसकी सादगी, और उसकी सोच ने निशा को कुछ अलग सोचने पर मजबूर कर दिया था।

आदित्य और निशा की मुलाकातें अब नियमित हो गई थीं। वे दिन में कभी-कभी मिलते थे, और बातें करते थे—जिंदगी, सपने, और अतीत। आदित्य ने निशा से अपनी कुछ गहरी बातें शेयर की थीं, जैसे कि कैसे उसे अपनी पहली किताब में असफलता का सामना करना पड़ा था, और कैसे उसने अपने डर को पार किया। निशा ने महसूस किया कि वह भी बहुत कुछ सीख रही थी, हर बातचीत में कुछ नया और प्रेरणादायक।

एक शाम, जब शहर की हलचल धीरे-धीरे कम हो रही थी, आदित्य ने निशा से एक सवाल पूछा, "क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारी जिंदगी के सबसे अच्छे पल कहाँ हैं?"

निशा को यह सवाल चौंकाने वाला लगा, क्योंकि उसने कभी अपने जीवन के इन सबसे अच्छे पल की पहचान नहीं की थी। वह मुस्कुराते हुए बोली, "शायद जब मैं अपनी पसंदीदा किताब पढ़ रही होती हूँ, या फिर जब मैं खुद को पूरी तरह से शांत महसूस करती हूँ।"

आदित्य ने धीरे से सिर हिलाया, "यह ठीक है, लेकिन कभी सोचा है कि कभी हमें जो चाहिए, वह हमें अपने सपनों में मिल सकता है?"

निशा ने कुछ समय के लिए सोचा और फिर बोला, "तुम्हारा क्या मतलब है?"

आदित्य ने अपनी गहरी आँखों से उसकी ओर देखा और कहा, "कभी कभी हमें अपने सपनों का पीछा करने के लिए अपने comfort zone से बाहर निकलना पड़ता है। ये एक जोखिम है, पर अगर तुमने सही दिशा में कदम रखा, तो तुम्हारी जिंदगी की दिशा बदल सकती है।"

निशा की आँखों में एक चमक सी आई। उसने महसूस किया कि यह वही मौका था, जब वह खुद को और अपने सपनों को जान सकती थी। वह अब जानती थी कि उसकी ज़िंदगी में बदलाव के लिए किसी का इंतजार करना जरूरी नहीं था; उसे खुद ही वह कदम उठाना था।


 भाग 4: कदम बढ़ाना 

कुछ हफ्ते बाद, निशा ने फैसला किया कि वह अपने जीवन में एक बड़ा बदलाव करेगी। आदित्य से मिली सीख ने उसे हिम्मत दी थी। वह अपनी नौकरी छोड़ने का सोच रही थी और अपनी असली पहचान तलाशने के लिए कदम बढ़ाने का मन बना चुकी थी।

यह निर्णय आसान नहीं था। उसे डर था कि अगर उसने ये कदम उठा लिया और कुछ गलत हुआ, तो क्या होगा? लेकिन फिर उसने आदित्य की बातों को याद किया—"हमारा डर हमें रोकता है, लेकिन जब हम उसे पार करते हैं, तो हम खुद को नया अनुभव देते हैं।"

एक सुबह निशा ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यह उसके लिए सबसे बड़ी और साहसी बात थी, जो उसने कभी की थी। अब उसका समय अपने सपनों को तलाशने का था। उसने कुछ महीनों तक अपना खुद का कैफे खोलने का विचार किया था—वहीं, जहाँ उसने आदित्य से पहली बार मुलाकात की थी। वह चाहती थी कि लोग वहाँ आकर न सिर्फ कॉफी का आनंद लें, बल्कि उस जगह की शांति और प्रेरणा का अनुभव भी करें।

आदित्य ने जब यह सुना, तो उसने खुशी से कहा, "तुमने सही कदम उठाया है, निशा। अब तुम्हें अपने रास्ते पर चलने देना है। तुम हमेशा कुछ बड़ा कर सकती हो।"

निशा ने उसे धन्यवाद कहा, और फिर वह नए रास्ते की ओर कदम बढ़ाने लगी। आदित्य के साथ उसकी दोस्ती और भी मजबूत हो चुकी थी, लेकिन अब वह जानती थी कि उसकी यात्रा की शुरुआत कहीं और से हो रही थी।


यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई, और निशा की यात्रा का असली रोमांच अभी बाकी था। क्या वह अपने सपनों को पूरा कर पाएगी? क्या आदित्य के साथ उसकी दोस्ती किसी नए मोड़ पर जाएगी? यह सब आने वाला समय बताएगा।


भाग 5 : नई शुरुआत 

निशा ने कैफे के लिए अपनी योजना बनाई थी, लेकिन उसे अब भी यह डर था कि वह अपनी राह पर सही कदम उठा रही है या नहीं। कैफे खोलना, खासतौर पर एक ऐसे शहर में, जहाँ लोग काफी साधारण जीवन जीते थे, यह एक बड़ा कदम था। वह हर दिन उस सपने के बारे में सोचती और फिर अपनी सोच को वास्तविकता में बदलने की कोशिश करती।

कुछ सप्ताह बाद, कैफे का निर्माण शुरू हुआ। निशा ने कुछ पुराने दोस्त और स्थानीय कारीगरों की मदद ली थी, और धीरे-धीरे वह जगह अपनी पहचान बनाने लगी। आदित्य हर दिन उसके साथ था, कभी विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए, कभी मदद देने के लिए। वह जानता था कि निशा का साहस उसे एक नया दिशा दे सकता है, और वह हमेशा उसके साथ था।

आदित्य ने एक दिन निशा से कहा, "तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। सबसे अच्छा यही होगा कि तुम अपनी ज़िंदगी की दिशा खुद तय करो। हर कदम में आत्मविश्वास चाहिए, क्योंकि किसी भी नए रास्ते पर चलने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण है।"

निशा मुस्कुराते हुए बोली, "तुम सही कहते हो आदित्य। शायद यही मेरा समय है, मुझे यह कदम उठाना ही था।"

आदित्य ने उसकी आँखों में एक हल्की सी मुस्कान देखी और कहा, "तुमने इस राह पर पहला कदम बढ़ा दिया है, अब तुम्हें सिर्फ आगे बढ़ना है।"

कैफे के उद्घाटन के दिन निशा के दिल में गहरी उम्मीदें और डर दोनों थे। जब वह कैफे की पूरी तैयारी के बाद उस दिन की सुबह पहुँची, तो उसने देखा कि सब कुछ वैसा था, जैसा उसने सपने में देखा था। कैफे का माहौल बिलकुल वही था—शांत, खूबसूरत, और प्रेरणादायक। दीवारों पर कुछ प्रेरणादायक कोट्स और तस्वीरें लगी हुई थीं, और बीच में हल्की सी लकड़ी की टेबल्स और कुर्सियाँ रखी हुई थीं।

निशा ने खुद से कहा, "यह मेरी पहली जीत है, और आगे बहुत कुछ करना है।"

उद्घाटन के बाद का दिन काफी व्यस्त था। लोग नए कैफे को देखने आए थे, और हर कोई यहाँ की शांति और गर्मजोशी से प्रभावित था। निशा ने देखा कि लोग यहाँ केवल कॉफी के लिए नहीं, बल्कि खुद को एक अद्भुत वातावरण में महसूस करने के लिए आए थे। हर किसी के चेहरे पर संतोष था, और यह देखकर उसे बहुत खुशी हुई।

इसी बीच आदित्य भी कैफे में आया। उसने निशा से कहा, "तुमने इसे सच कर दिया है, निशा। यह तुम्हारी मेहनत और हिम्मत का नतीजा है।"

निशा ने थोड़ी सी मुस्कुराहट के साथ कहा, "यह सब तुम्हारी मदद और प्रोत्साहन से हुआ है, आदित्य।"

आदित्य ने कहा, "अब तुम्हें समझ में आ रहा है कि क्या होता है किसी को अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने डर को पार करना।"

निशा ने उसे देखा और कहा, "हाँ, अब मुझे समझ में आ रहा है। यह मेरे लिए एक नई शुरुआत है, और मैं इसे हर कदम पर जीने का इरादा रखती हूँ।"


 भाग 6 : प्यार का अहसास 

समय बीतता गया, और निशा का कैफे अब शहर का एक पसंदीदा ठिकाना बन चुका था। वह न केवल एक सफल कारोबारी बन चुकी थी, बल्कि उसने अपने अंदर एक नई ताकत भी महसूस की थी। लोग उसकी कहानियाँ सुनने आते थे, और वह उन्हें अपने जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में बताती थी। धीरे-धीरे उसकी और आदित्य की दोस्ती और भी गहरी होती जा रही थी।

एक शाम, जब कैफे बंद हो गया था और निशा कुछ देर के लिए आराम करने के लिए बैठी थी, आदित्य अचानक आया। वह थोड़ा चुप था, जैसे कुछ सोच रहा हो।

निशा ने देखा और कहा, "क्या हुआ, आदित्य? तुम इतने चुप क्यों हो?"

आदित्य ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "मुझे एक बात कहनी है, निशा। तुमसे मिलने के बाद, मैं महसूस करता हूँ कि मैंने अपनी ज़िंदगी में कुछ बहुत खास पाया है। तुमसे जुड़कर मुझे अपने सपनों का पीछा करने की हिम्मत मिली है, और अब मुझे लगता है कि... मुझे तुमसे कुछ और भी कहना चाहिए।"

निशा का दिल थोड़ी तेज़ धड़कने लगा। उसने धीमे से कहा, "क्या कहना चाहते हो?"

आदित्य ने एक गहरी सांस ली और फिर कहा, "क्या तुम मुझे अपने जीवन में एक और जगह दे सकोगी, निशा? मैं तुमसे बहुत कुछ महसूस करता हूँ, और मुझे लगता है कि हमारे बीच कुछ खास है।"

निशा ने उसकी आँखों में देखा, और फिर धीरे से कहा, "आदित्य, मैं भी तुम्हें बहुत समझती हूँ। मुझे लगता है कि हमारी ज़िंदगी की राहें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।"

इस पल के बाद, निशा और आदित्य के बीच एक नई शुरुआत हुई, और उनकी दोस्ती अब एक नए रिश्ते की ओर बढ़ने लगी। निशा ने समझा कि प्यार सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि साथ बिताए गए समय, साझा की गई खुशियों, और एक-दूसरे के साथ खड़े रहने में होता है।


 भाग 7 : एक साथ जीवन की राह पर 

निशा और आदित्य का रिश्ता धीरे-धीरे और गहरे होते गया। दोनों ने एक-दूसरे के साथ बहुत से सपने देखे और एक-दूसरे को हर कदम पर सपोर्ट किया। निशा ने महसूस किया कि अब उसकी ज़िंदगी में सिर्फ अपने सपनों को पूरा करने की चाहत नहीं थी, बल्कि अब उसके साथ एक ऐसा इंसान भी था, जो हर मोड़ पर उसके साथ खड़ा था—आदित्य।

कुछ महीनों बाद, निशा और आदित्य ने फैसला किया कि वे अपने जीवन को एक साथ आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने एक साथ नए सपनों की दिशा में कदम रखा, और निशा का कैफे अब न केवल एक व्यावासिक स्थल था, बल्कि वह दोनों के प्यार और रिश्ते का प्रतीक बन चुका था।

यह कहानी सिर्फ एक लड़की के सपनों की नहीं थी, बल्कि यह दो दिलों के मिलन की थी—एक ऐसी यात्रा, जिसमें प्यार, समझ, और हिम्मत से नए रास्ते बने थे।


यह कहानी अब एक नई शुरुआत की ओर बढ़ चुकी थी, और निशा के जीवन में बहुत कुछ बदल चुका था, लेकिन अब वह जानती थी कि असली सफलता वह नहीं थी, जो उसे बाहर से मिली, बल्कि वह थी, जो उसने अपने भीतर पाई।


भाग 8: नई जिम्मेदारियाँ 

निशा और आदित्य के रिश्ते को अब कुछ महीने हो चुके थे। उनका प्यार अब केवल शब्दों में नहीं, बल्कि उनकी हर गतिविधि, हर निर्णय में स्पष्ट था। उनका कैफे एक परिवार की तरह चलने लगा था, जहाँ हर व्यक्ति को प्यार और अपनापन महसूस होता था। निशा को यह एहसास हुआ कि उसने सिर्फ अपने सपने को पूरा नहीं किया, बल्कि उसने एक ऐसा स्थान बनाया था जहाँ लोग अपने दिल की बातें, अपनी खुशियाँ और ग़म साझा कर सकते थे।

लेकिन, जैसे-जैसे कैफे का काम बढ़ रहा था, निशा की जिम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगीं। अब उसे न केवल अपने कर्मचारियों का ख्याल रखना था, बल्कि कैफे की नई योजनाओं को भी लागू करना था। कभी-कभी, उसे लगता था कि यह सब वह अकेले नहीं कर पा रही है, और कुछ दिनों से वह थोड़ी थकी-थकी सी महसूस कर रही थी। आदित्य, जो हमेशा उसके पास होता था, अब उसकी मदद करने में और भी ज्यादा सक्रिय हो गया था।

एक दिन शाम को, जब निशा और आदित्य कैफे में बैठे थे, आदित्य ने उससे कहा, "तुम बहुत थकी हुई लग रही हो, निशा। मैं देख रहा हूँ कि तुम इन सब जिम्मेदारियों में खोकर खुद को भूल रही हो। तुम पहले की तरह अपने आप को थोड़ा वक्त दो। तुम्हारे लिए भी यह जरूरी है कि तुम खुद को फिर से ढूंढ सको।"

निशा ने उसे सुना और धीरे से मुस्कराई। "मैं जानती हूँ, आदित्य, पर यह काम मुझे बहुत पसंद है। मुझे लगता है, मेरी मेहनत का फल मुझे दिखता है जब लोग इस जगह को पसंद करते हैं, और मैं खुद को संतुष्ट महसूस करती हूँ।"

आदित्य ने उसे समझाते हुए कहा, "यह अच्छा है कि तुम अपनी मेहनत को देखती हो, लेकिन अगर तुम खुद को नहीं संभालोगी तो इस सबका मतलब क्या होगा? हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए, और मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

निशा ने उसकी बातों को गहरे से समझा। वह थोड़ी देर चुप रही और फिर कहा, "तुम ठीक कहते हो, आदित्य। कभी-कभी मैं अपने आप को और इस काम को इतना अहमियत देती हूँ कि अपनी जरूरतों को भूल जाती हूँ। शायद मुझे थोड़ा वक्त खुद के लिए भी निकालना चाहिए।"

आदित्य ने उसकी बातों पर हामी भरते हुए कहा, "तुमने सही कहा। अगर तुम अपनी ज़िंदगी को और बेहतर बनाना चाहती हो, तो तुम्हें खुद को भी महत्व देना होगा। मैं तुम्हारी मदद करूंगा, और तुम इस नई यात्रा पर मुझे अपने साथ ले आओ।"


भाग 9 : खुद के साथ समय 

निशा ने आदित्य की बातों पर गंभीरता से विचार किया और तय किया कि अब वह अपने लिए भी समय निकालेगी। यह आसान नहीं था, क्योंकि कैफे की जिम्मेदारी ने उसे काफी व्यस्त बना दिया था। लेकिन उसने धीरे-धीरे कुछ छोटे बदलाव किए। उसने सप्ताह में एक दिन अपनी पसंदीदा किताबों को पढ़ने और थोड़ा आराम करने के लिए रखा। आदित्य के साथ वह ज्यादा वक्त बिताने लगी, और दोनों ने छोटे-छोटे सफर पर जाने का भी निर्णय लिया।

इस बीच, कैफे में कुछ नई योजनाएं शुरू हुईं। निशा ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक खास कैफे इवेंट आयोजित किया, जिसमें शहर के विभिन्न कलाकारों को बुलाया गया था। इस इवेंट का उद्देश्य सिर्फ व्यापार बढ़ाना नहीं था, बल्कि लोगों को एक साथ लाना था, जहाँ वे अपने हुनर और विचारों को साझा कर सकें।

एक दिन, जब कैफे में एक नया संगीत कार्यक्रम हो रहा था, निशा और आदित्य दोनों मिलकर उस शाम का लुत्फ उठा रहे थे। लोग वहां आए थे, कलाकारों ने अपने गीतों और नृत्य से माहौल को जीवंत कर दिया था। निशा ने आदित्य से कहा, "आज मुझे लगता है, हमने जो भी किया, वह सही था। यह इवेंट लोगों को जोड़ने का एक अच्छा तरीका था।"

आदित्य ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "तुमने यह सब अपने दिल से किया है, निशा। यही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है। तुमने अपने सपनों को साकार किया और साथ ही लोगों को जोड़ने का एक अद्भुत तरीका खोज लिया।"

निशा ने सिर झुकाया और फिर आदित्य की ओर देखा, "मैं जानती हूँ कि इस सफर में तुम हमेशा मेरे साथ रहे हो, आदित्य। तुम्हारी मदद और साथ के बिना यह सब संभव नहीं हो पाता।"

आदित्य ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "तुम दोनों के बिना मैं कभी अपने कदमों को सही दिशा में नहीं बढ़ा पाता। यह हमारी साझेदारी का परिणाम है।"


 भाग 10: प्यार और दोस्ती का संतुलन 

कभी-कभी, जब निशा और आदित्य अकेले होते थे, तो दोनों महसूस करते थे कि उनका रिश्ता सिर्फ प्यार से कहीं अधिक था। यह एक गहरी दोस्ती भी थी। उन्होंने एक-दूसरे को अपने जीवन के हर पहलु में समझा था, और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।

निशा अब जानती थी कि प्यार केवल रोमांटिक एहसासों का नाम नहीं था। यह उस विश्वास का नाम था जो दोनों के बीच था। यह समझने का था कि किसी को अपने जीवन में पाकर वह खुद को और बेहतर बना सकते थे।

एक दिन, आदित्य ने निशा से कहा, "तुम्हें कभी ऐसा लगता है कि हम दोनों ने अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हे एक दूसरे के साथ बिताए हैं?"

निशा ने उसकी ओर देखा और धीरे से कहा, "हां, मुझे लगता है कि हम दोनों ने अपनी दुनिया को एक साथ बेहतर बनाया है। हम न केवल एक-दूसरे के प्यार में हैं, बल्कि हम एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त भी हैं।"

आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा, "अगर यही प्यार है, तो मैं यही चाहता हूँ—तुम्हारे साथ, हमेशा।"

निशा ने उसकी ओर बढ़कर कहा, "मैं भी यही चाहती हूँ, आदित्य। हमारी ज़िंदगी इस रास्ते पर एक साथ चलने के लिए बनी है।"


निशा और आदित्य ने अपने जीवन के अगले अध्याय की शुरुआत की। उनके रिश्ते की नींव प्यार, समझ, और साझेदारी पर थी। कैफे के साथ उनका सफर अब एक नया रूप ले चुका था—यह सिर्फ एक कैफे नहीं, बल्कि एक स्थल था जहाँ दिलों का मिलन होता था। उनका प्यार अब सिर्फ एक एहसास नहीं, बल्कि एक जीवन की कहानी बन चुका था।

जब भी वे एक-दूसरे को देखते, वे जानते थे कि साथ मिलकर उन्होंने न सिर्फ एक व्यवसाय खड़ा किया, बल्कि अपने सपनों को साकार किया और एक-दूसरे के साथ अपना जीवन जीने का असली अर्थ खोजा।

यह कहानी नहीं थी सिर्फ एक लड़की और एक लड़के की, बल्कि यह थी उन दो दिलों की जो एक-दूसरे के साथ मिलकर अपनी ज़िंदगी को नया आकार देते थे।


भाग 11: नए संघर्ष 

काफ़ी समय बीत चुका था, और निशा और आदित्य की जिंदगी में कुछ नए बदलाव आ रहे थे। अब कैफे पूरी तरह से शहर में एक पहचान बना चुका था। लोग यहां केवल खाने-पीने के लिए नहीं, बल्कि आराम और शांति के लिए आते थे। उनका कैफे एक ऐसी जगह बन चुका था, जहां लोग अपनी थकान को उतारने आते थे, जहां जीवन की जटिलताओं से थोड़ा समय निकालकर वे आराम से बैठ सकते थे।

लेकिन जैसा कि हर सफलता के साथ कुछ चुनौतियां आती हैं, वैसे ही कैफे को चलाना अब निशा के लिए एक नई परीक्षा बन गया था। व्यवसाय के बढ़ते दबाव और निरंतर काम ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से थका दिया था। वह समझने लगी थी कि केवल काम करना और दूसरों के लिए खुशियां लाना ही पर्याप्त नहीं था, उसे खुद के लिए भी कुछ वक्त निकालना होगा।

आदित्य भी देख रहा था कि निशा अब पहले जैसी नहीं रही। उसके चेहरे पर वह चमक नहीं थी, और उसकी ऊर्जा में कमी महसूस होने लगी थी। एक शाम, जब वे दोनों कैफे के बंद होने के बाद बैठकर चाय पी रहे थे, आदित्य ने उसे ध्यान से देखा और पूछा, "क्या तुम ठीक हो, निशा? मुझे लगता है कि तुम थकी हुई हो, क्या कुछ परेशान हो?"

निशा ने चुपचाप एक गहरी सांस ली और कहा, "आदित्य, मैं थक चुकी हूं। मुझे लगता है कि मैं खुद को बहुत पीछे छोड़ आई हूं। कैफे को बढ़ाने के लिए मैंने अपनी सारी ऊर्जा लगा दी, लेकिन अब मुझे खुद को फिर से ढूंढने का वक्त चाहिए।"

आदित्य ने उसकी हाथों को अपने हाथों में लिया और कहा, "तुमने इस कैफे को अपनी मेहनत और प्यार से इतना कुछ दिया है। अब समय है कि तुम खुद के लिए कुछ सोचो, कुछ समय खुद को दो। तुम्हें समझने की ज़रूरत है कि बिना खुद का ख्याल रखे तुम औरों का ख्याल नहीं रख सकती।"

निशा की आँखों में आँसू थे, उसने सिर झुकाकर कहा, "तुम सही कहते हो, आदित्य। मुझे लगता है कि मैं खुद से भाग रही हूँ।"

आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुमसे भागने की जरूरत नहीं है, निशा। तुम्हे खुद को स्वीकार करना होगा, और तुम जो हो, उसी में खुश रहना होगा। हम साथ हैं, हम सब कुछ सही करेंगे।"


भाग 12 : आत्म-खोज 

निशा ने आदित्य की बातों पर गंभीरता से विचार किया और महसूस किया कि उसे अपनी जिंदगी में एक संतुलन की आवश्यकता है। उसने तय किया कि वह कुछ दिनों के लिए कैफे से छुट्टी लेगी और खुद के साथ समय बिताएगी। यह निर्णय उसके लिए कठिन था, लेकिन वह जानती थी कि अगर उसे खुद को ढूंढना था, तो उसे यह कदम उठाना होगा।

आदित्य ने निशा के फैसले का पूरी तरह से समर्थन किया। "तुम्हारे लिए ये कदम उठाना ज़रूरी था, और मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ," उसने कहा।

निशा ने एक सप्ताह की छुट्टी ली और अपने छोटे से अपार्टमेंट में कुछ दिन अकेले बिताए। उसने किताबें पढ़ी, संगीत सुना, और प्रकृति में समय बिताया। उसने अपनी पुरानी यादों को ताजा किया, जिनमें बचपन की बातें, पुराने दोस्त, और उसके सपने शामिल थे। यह समय उसे यह समझने में मदद कर रहा था कि वह क्या चाहती थी और उसके जीवन का उद्देश्य क्या था।

यह एक अनमोल समय था। निशा ने महसूस किया कि अब उसे खुद को एक नए नजरिए से देखना था। उसने धीरे-धीरे अपने अंदर की ताकत को पहचाना और वह जान पाई कि उसे क्या करना चाहिए। वह अब केवल कैफे को ही नहीं, बल्कि अपनी ज़िंदगी को भी अपनी शर्तों पर जीने का इरादा रखती थी।


भाग 13 : एक नई दिशा 

कुछ दिनों बाद, निशा ने वापस कैफे का रुख किया। लेकिन अब वह बहुत बदल चुकी थी। उसकी आंतरिक शांति और संतुलन साफ दिखाई दे रहा था। उसने आदित्य से कहा, "अब मैं तैयार हूं। मैंने जो कुछ भी किया, उसे स्वीकार किया है और अब मैं अपनी ज़िंदगी में एक नई दिशा लेना चाहती हूं।"

आदित्य ने उसे गौर से देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "तुमने खुद को ढूंढ लिया है, निशा। और अब तुम्हारे पास हर संभव रास्ता खुला है। मैं तुमसे कह सकता हूं, तुम पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो।"

निशा ने सिर झुकाकर कहा, "अब मुझे लगता है कि मैं अपने सपनों को नए तरीके से जी सकती हूं। मैं सिर्फ दूसरों के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए भी जिऊंगी।"

कैफे के काम में अब निशा ने बदलाव लाए। उसने अपनी टीम के साथ मिलकर योजनाएं बनाई कि कैसे वह और भी प्रभावी तरीके से काम कर सकती थी, बिना खुद को खोए। उसने अपने कर्मचारियों को भी प्रेरित किया कि वे खुद के लिए समय निकालें, ताकि वे अपना काम और जिंदगी दोनों सही तरीके से संतुलित कर सकें।

आदित्य और निशा अब एक-दूसरे के साथ न केवल प्यार बल्कि एक गहरी साझेदारी में थे। दोनों अपने-अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे का साथ दे रहे थे। आदित्य ने निशा के नए दृष्टिकोण को देखकर महसूस किया कि वह अपनी खुद की जिंदगी को भी और बेहतर तरीके से जी सकता था।

दोनों ने अपने जीवन को एक नई दिशा में ढाला, जहां उन्होंने न केवल अपने काम को सही दिशा दी, बल्कि एक दूसरे के साथ खुद को भी सही तरीके से समझा और स्वीकार किया।


निशा और आदित्य की कहानी एक नई शुरुआत की ओर बढ़ी। वे समझ गए थे कि प्यार सिर्फ एक एहसास नहीं, बल्कि यह एक साझा यात्रा है जिसमें दोनों के प्रयास और समझदारी की आवश्यकता होती है। निशा ने खुद को पहचाना, आदित्य ने उसे समझा, और उनके रिश्ते ने नए आयाम को छुआ।

उनका कैफे अब एक ऐसी जगह थी, जहां हर किसी को केवल आराम और आनंद नहीं, बल्कि आत्म-खोज और आत्म-सम्मान का अहसास भी होता था। यह दोनों के लिए जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी—साथ रहकर खुद को और दूसरों को समझने की यात्रा।



भाग 14 : निष्कर्ष 

यह कहानी एक सुंदर यात्रा की मिसाल है, जहां न केवल रिश्ते बल्कि व्यक्तिगत विकास भी महत्व रखता है। निशा और आदित्य का आपसी समर्थन और समझदारी दर्शाते हैं कि सच्चा प्यार केवल एक-दूसरे के साथ समय बिताने से नहीं, बल्कि एक-दूसरे की आत्मा को समझने और उसे स्वीकार करने से आता है।

निशा का आत्म-खोज और आत्म-सम्मान की दिशा में कदम उठाना न केवल उसकी सफलता का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि कभी-कभी खुद के लिए समय निकालना बहुत जरूरी होता है, ताकि हम अपने सपनों और रिश्तों में संतुलन बनाए रख सकें।

इसमें कैफे का स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है, जो केवल एक व्यापारिक स्थल नहीं, बल्कि आत्म-संवेदन और शांति की एक जगह बन जाता है। यह कहानी न केवल व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों को छूती है, बल्कि सामूहिक प्रयास, सहयोग, और समझ का महत्व भी समझाती है।

सार्थक और प्रेरणादायक।



आशुतोष प्रताप "यदुवंशी" 




The creative novels PART -1


 

The creative novels PART- 1 (सपनों का सागर)



"सपनों का सागर"

आजकल के ज़माने में किसी के पास समय नहीं होता। समय के साथ हम भी अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन जब कभी भी हम अपनी पुरानी यादों में खो जाते हैं, तो हमें लगता है कि हम कहीं खो गए हैं, लेकिन सच तो यह है कि हम वही हैं, जो कभी थे। यही कहानी है एक ऐसे लड़के की, जिसका नाम अजय था।

अजय एक छोटे से गाँव में रहता था। गाँव की हवाओं में एक अजीब सा खुमार था, जो हर किसी को अपने में समाहित कर लेता। यह गाँव न तो बहुत समृद्ध था, और न ही बहुत पिछड़ा, लेकिन यहाँ के लोग एक-दूसरे से सच्चे और सीधे दिल से जुड़े थे। अजय का दिल भी वैसा ही था – सच्चा और बिना किसी छल-कपट के।

अजय की सबसे बड़ी कमजोरी थी उसका सपनों में खो जाना। वह दिन-रात अपनी कल्पनाओं में खोया रहता था। उसे लगता था कि इस छोटे से गाँव के बाहर एक विशाल दुनिया है, जहाँ न कोई डर है और न कोई चिंता। वह बार-बार सोचता, "क्या होगा अगर मैं अपनी कल्पनाओं को हकीकत बना सकूं?"

गाँव में एक पुराना तालाब था। अजय अक्सर वहीं बैठा करता था और घंटों तक उस पानी की लहरों को देखता रहता। उसे लगता, जैसे उस पानी में कुछ छिपा है, कोई रहस्य, जो सिर्फ उसे ही जानना है। वह सोचता था, "क्या ऐसा कोई जादुई संसार है, जहाँ मैं अपनी कल्पनाओं को सच कर सकता हूँ?"

एक दिन, अजय ने तय किया कि वह इस तालाब के गहरे पानी में डुबकी लगाएगा। यह कोई सामान्य निर्णय नहीं था। अजय को लगता था कि वह अब तक जिस तरह अपनी दुनिया में खोया रहा, अब वह हकीकत से परिचित होना चाहता था। वह जानता था कि अगर वह सच में अपनी कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलना चाहता है, तो उसे कुछ बड़ा करना होगा।

अजय ने तालाब के किनारे पर बैठ कर अपने पैरों को पानी में डुबो दिया। तालाब की गहरी शांति उसे एक अजीब सा सुकून दे रही थी। अचानक, तालाब के पानी में एक हलचल हुई। अजय ने आँखें मिचमिचाई, और देखा कि तालाब में से एक जलपरी उभर कर बाहर आई। वह जलपरी हरी-भरी थी, और उसकी आँखों में एक गहरी चमक थी।

"तुम कौन हो?" अजय ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

"मैं तुम्हारी कल्पनाओं का रूप हूँ," जलपरी ने कहा। "तुम्हारे सपने और इच्छाएँ मुझे यहाँ लाती हैं। तुम अकेले नहीं हो, अजय। तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हारे साथ हैं।"

अजय की आँखों में विश्वास और संदेह का मिला-जुला भाव था। "क्या तुम सच में मेरी मदद कर सकती हो?" उसने पूछा।

जलपरी मुस्कराई और बोली, "मैं तुम्हारे सपनों को साकार कर सकती हूँ, लेकिन इसके बदले तुम्हें कुछ देना होगा।"

अजय ने गहरी साँस ली। "क्या देना होगा?" उसने पूछा।

"तुम्हें अपनी सच्चाई पहचाननी होगी। तुम्हें यह समझना होगा कि सपने तभी सच्चे होते हैं, जब उन्हें अपनी मेहनत से साकार किया जाए।" जलपरी ने कहा। "तुम्हारा सपना केवल कल्पना में नहीं रह सकता। तुम्हें अपनी पूरी शक्ति से उसे जीना होगा।"

अजय ने सोचा, और फिर उसकी आँखों में एक नई उम्मीद चमकी। "मैं तैयार हूँ।"

जलपरी ने अपनी चमकदार हरी पूँछ हिलाई और तालाब का पानी चमकने लगा। अचानक, एक शानदार पुल तालाब के ऊपर से उभर आया, जो एक विशाल समंदर के किनारे तक जाता था।

"यह है तुम्हारा सपना," जलपरी ने कहा। "अब तुम्हें इस पुल को पार करना होगा। यह तुम्हारी यात्रा का पहला कदम होगा।"

अजय ने घबराए बिना पुल की ओर कदम बढ़ाए। वह जानता था कि यह कोई आसान रास्ता नहीं होगा, लेकिन वह तय कर चुका था कि वह अपने सपनों की दुनिया को साकार करेगा।

पुल के पार जाते हुए उसे कई कठिनाइयाँ आईं। कभी तेज हवाएँ, कभी तूफानी लहरें, और कभी-कभी तो उसे लगता कि वह गिर जाएगा। लेकिन हर बार उसने खुद को सँभाला और आगे बढ़ा। उसकी मेहनत, उसका संघर्ष, और उसकी उम्मीदें उसे मजबूत बनाए रखतीं।

अंततः, वह उस समंदर के किनारे पहुँचा। वहाँ एक अद्भुत दुनिया थी – एक दुनिया जहाँ हर आदमी अपनी कल्पनाओं को सच कर सकता था। यहाँ हर रास्ता, हर पेड़, और हर पल उसकी मेहनत का परिणाम था। अजय को समझ में आ गया कि यह समंदर उसकी मेहनत और दृढ़ता का प्रतीक था।

जलपरी उसके पास आई और बोली, "तुमने अपनी यात्रा पूरी की, अजय। तुम्हें अब यह समझ आ गया है कि कोई भी सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक हम उसे अपनी मेहनत और संघर्ष से पूरा न करें।"

अजय मुस्कराया और बोला, "मैंने यह समझ लिया। अब मैं अपनी दुनिया को खुद बनाएँगा।"

वह समझ चुका था कि सपने केवल कल्पनाओं में नहीं रहते, बल्कि जब हम उन्हें अपनी मेहनत और साहस से जीते हैं, तो वे हकीकत बन जाते हैं।

इस प्रकार, अजय ने अपनी यात्रा पूरी की और एक नई दुनिया की ओर कदम बढ़ाया, जहाँ उसने अपनी कल्पनाओं को साकार किया और अपनी असल दुनिया को भी बदला।


आशुतोष प्रताप "यदुवंशी"

WRITE & SPEAK

 




गीता राठौर "गीत"(गीतकार)

छंद मनहरण घनाक्षरी:-


वृंद भंवरों के बृंद तितलियों के गाने लगे 

आ गया वसंत फिर छाई खुशहाली है 

सुमन सुगंधित बयार मन भावनी है

पीली सरसों पे हरी हरी हरियाली है 

उर में उमंग रंग प्रीत का चढ़ाने वाली

कोयल की मीठी तान शान मतवाली है 

देता प्रेम का संदेश आ गया है ऋतुराज 

यही तो संदेश देश का प्रभावशाली है 

      


  गीता राठौर "गीत"

        गीतकार 

 शहर -पीलीभीत ,पूरनपुर ,उत्तर प्रदेश





अभिषेक मिश्रा सचिन 




मेरी फ़ितरत में सनम बेवफ़ाई नहीं ! 

तेरी तस्वीर अब तक फोन हटाई नहीं !! 

बस इसी बात से ये दिल मेरा परेशान है! 

तेरे बाद किसी और से नजरें मिलाई नहीं !! 

तू करे याद मुझको या ना करे सनम !! 

मगर मैंने कभी भी तेरी बातें भूलाई नहीं!!

मेरी किस्मत में शायद तेरी जुदाई सही! 

मैं अगर गलत हूं तो गलत ही सही! 

क्या यार तुझ में कोई बुराई नहीं!! 

मेरी फितरत में सनम बेवफाई नहीं !! 

तेरी तस्वीर अब तक फोन से हटाई नहीं!!

... ___________________________...

                             *शायर✍*

                  *अभिषेक मिश्रा सचिन*








मनोज मंजुल (ओज कवि)



राष्ट्रवादिता की आन वंदे मातरम, 
राष्ट्रवादिता की शान वंदे मातरम। 
राष्ट्रवादिता की शान वंदे मातरम, 
राष्ट्रवादिता की खान वंदे मातरम। 
राष्ट्रीयता का सारा मान वंदे मातरम, 
पूरे राष्ट्र का ये गान वंदे मातरम। 
अब मिट जाए या फिर लुट जाए हम, 
मरते दम तक गायेंगे हम वंदे मातरम। 
वंदे मातरम देश की है आत्मा, 
वंदे मातरम गीत है देवात्मा। 
वंदे मातरम गा रही जीवात्मा, 
वंदे मातरम बोला बापू महात्मा। 
इसे गाकर अशफाक फांसी पर झूले,
इसे गाकर भारत समाता न फूले।
इसलिए हमने यह खाई है कसम, 
मरते दम तक जाएंगे हम वंदे मातरम। 
शहीदों की हुंकार है वंदे मातरम, 
भारतीयों का गीत है वंदे मातरम। 
भारत का मस्तक है वंदे मातरम, 
देश का मुकुट भी है वंदे मातरम। 
भारती का अभिनंदन वंदे मातरम, 
जय हो मां भारती की वंदे मातरम। 
भारत की माटी का है यही स्वागतम, 
मरते दम तक गायेंगे हम वंदे मातरम।

 
मनोज मंजुल (ओज कवि )
जिला कासगंज , उत्तर प्रदेश 
मोबाइल नंबर 94570 22318




कविता बोरा 


"व्यक्तित्व का साक्षात्कार"




स्वयं को जीतने की अभिलाषा कर,
 छूट जायेगा निरंतर एक दिन|
 तम के अंधकार का विध्वंस  कर, 
सुपुनित मनोवृत्ति का संचार कर |
रणभूमि में खड़ा रह जीवन के,
 यश अपयश की चिंता न कर|
 बीते हुए का शोक न कर,
 क्या होगा विलाप न कर |

जीवन संग्राम में रुकना नहीं, झुकना, नहीं, 
वास्तवि‌कता की पहचान कर|
 संसार का सार देख, स्वयं का परिचय स्वयं से कर ,
जीते जी मृत के समान व्यव्हार न कर|
माटी देह में ईमान का प्राण भर 
अफवाह नहीं हकीकत को तलाश कर, 
चल उठ अधिक न विलाप कर ,
कर्तव्य पथ पर कैसा शोक?

 आत्म प्रकाश प्रज्वलित कर ,
हृदय मंथन कर प्रतिपल|
 सूर्य समान स्वयं को नवपुंज में प्रज्वलित कर ,
वैभव का अधिक मान न कर| 
सज्जनता का अपमान न कर,
 कर्म कर सही मगर शब्दों की गरिमा पार न कर|

 दिखावे, बनावट से नहीं, 
मानव की पहचान मानवता से कर|
 स्वयं का युद्ध स्वयं से कर, जीत ले स्वयं को,
 सच्चिदानन्द से मिला वरदान|
 जीवन पथ पर निडर अनुगमन कर ,
संघर्ष के पथपृष्ठ गढ़, चल उठ अधिक न विलाप कर .....।

  कविता बोरा
 पिथौरागढ़, उत्तराखंड







प्रियंका हर्बोला



भिक्षा-पात्र

यदि प्रेम भीख स्वरूप मिल रहा हो तो समझ लेना सामने वाले ने आपके हृदय का समंदर नहीं देखा बल्कि एक भिक्षा पात्र देखा है। जो हृदय नहीं देख सका, उसकी दी कौड़ियों को मुट्ठी में दबाए कितने मील चलेंगे आप और किस मंदिर के किस ईश के चरणों में उसे रख, आप माँग लेंगे उसे? और क्यों? जिसको समंदर दिखना होगा, वो पहले ही एक सिक्का रख आया होगा आपके नाम का। ईश्वर तथास्तु कह भी देंगे। बेफिक्र जियें। प्रेम समंदर बनके लौटेगा। किसी समंदर को कोई समंदर दिखेगा-भिक्षा पात्र नहीं।

-प्रियंका हर्बोला✍️