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भिखारी ठाकुर

भिखारी ठाकुर {भोजपुरी साहित्यकार संगीतकार एवंकलाकार}

 

भोजपुरी के महान साहित्यकार : भिखारी ठाकुर

 

भिखारी ठाकुर (1887-1971) भोजपुरी के महान साहित्यकार, नाटककार और लोकगायक थे। उन्हें "भोजपुरी का शेक्सपियर" कहा जाता है। उनका जन्म बिहार के छपरा जिले के एक छोटे से गांव की एक साधारण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी रचनाओं और नाटकों के माध्यम से भोजपुरी भाषा, साहित्य, और संस्कृति को एक नई दिशा दी। 


भिखारी ठाकुर का परिचय:


1. जन्म और परिवार

  

  भिखारी ठाकुर का जन्म 1887 में बिहार के छपरा जिले के कुतुबपुर गांव में हुआ था। उनका परिवार साधारण किसान था, लेकिन वे साहित्य और कला के प्रति गहरे आकर्षण से प्रभावित थे। 


2. शिक्षा  

 भिखारी ठाकुर   ने अपने प्रारंभिक जीवन में बहुत कम औपचारिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनकी लेखन क्षमता और कला की समझ उन्हें पारंपरिक शिक्षा से कहीं अधिक गहरी थी। उन्होंने अपनी लेखन कला और लोक जीवन की समझ को अपने अनुभवों और साधारण जीवन से सीखा।


3. साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान 

   भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी साहित्य और नाट्य कला में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे भोजपुरी के पहले नाटककार माने जाते हैं, जिन्होंने लोक जीवन की समस्याओं को अपने नाटकों और गीतों में व्यक्त किया। उनके नाटकों और गीतों में सामाजिक मुद्दे, प्रेम, संघर्ष, और धार्मिक विषयों को बहुत ही सरल और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है।


4. लोक नाटक और गीत  

   भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी नाटक और गीतों के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। उनके प्रमुख नाटकों में "रानी मिरचा","गिरधर के विवाह","बिहारी ठाकुर की कथा"और "वीर कुंवर सिंह" शामिल हैं। उन्होंने भोजपुरी में ऐसे नाटक लिखे, जो न केवल मनोरंजन करते थे, बल्कि समाज में जागरूकता और सुधार का संदेश भी देते थे। उनके गीतों में लोक जीवन के अनुभव और भावनाएँ गहरी होती थीं, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं।


5. समाज सुधारक दृष्टिकोण  

   भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों, जैसे जातिवाद, लिंगभेद और सामाजिक असमानताएँ, को उभारा। उनके नाटकों और गीतों में इन समस्याओं पर प्रहार किया गया और समानता की ओर अग्रसर होने का संदेश दिया गया।


6. भक्ति साहित्य में योगदान  

 भिखारी ठाकुर ने धार्मिक और भक्ति आधारित गीत भी लिखे, जिनमें उन्होंने भक्ति भाव और धर्म के महत्व को प्रस्तुत किया। उनके भक्ति गीत आज भी पूजा स्थलों और धार्मिक कार्यक्रमों में गाए जाते हैं।


7. अलौकिक पहचान 

  भिखारी ठाकुर की कला ने उन्हें न केवल भोजपुरी क्षेत्र में, बल्कि अन्य भाषी क्षेत्रों में भी पहचान दिलाई। उनके नाटक और गीतों ने भोजपुरी समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।



भिखारी ठाकुर का योगदान भोजपुरी साहित्य और संस्कृति में अतुलनीय है। उनका लेखन लोक जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता है और उन्होंने भोजपुरी भाषा को न केवल साहित्यिक, बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी दिलाई। उनकी रचनाएँ आज भी लोक साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

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